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आदिवासी समुदाय ने निकाली महारैली, कहा कुरमी समाज हकमारी करेगा तो चुप नहीं बैठेगा समाज

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रांची, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के तत्वावधान में sunday को मोरहाबादी मैदान में आक्रोश महारैली का आयोजन किया गया. इसमें काफी संख्या में लोग शामिल हुए. इस दौरान कुड़मी संगठनों की एसटी दर्जे की मांग का विरोध किया गया. रैली में में दो प्रस्ताव पारित किये गये. कुड़मी को एसटी सूची में शामिल होने से रोकने के लिए President, प्रधानमंत्री, जनजातीय मंत्रालय, राज्यपाल, Chief Minister , टीएसी और टीआरआइ को ज्ञापन सौंपा जायेगा.

वहीं, अगर जरूरत पड़ी, तो आदिवासी समुदाय राज्य में चक्का जाम करेंगे. रैली में आदिवासी एक्टिविस्ट और लेखक ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि हमारे पुरखों ने तीर-धनुष से लड़ाई की थी. हम कागज-कलम से लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि कुड़मी समुदाय Jharkhand में सबसे बड़ा कब्जाधारी है. उन्होंने रघुनाथ भूमिज को रघुनाथ महतो घोषित किया. यह इतिहास की चोरी थी. 1872 से 1921 तक किसी भी जनगणना में इनका नाम आदिवासियों के रूप में दर्ज नहीं था. अगर ये आदिवासी हैं, तो जयराम महतो की पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कुड़मियों के लिए इडब्ल्यूएस की तर्ज पर आरक्षण की मांग क्यों की थी.

अजय तिर्की ने कहा कि रेल टेका, डहर छेका से आदिवासी नहीं बना जाता. संविधान में पांच मानक हैं, जिस पर वे खरे नहीं उतरते हैं. अभी तक हम शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे हैं. पर आनेवाले समय में हमारा आंदोलन उग्र होगा. कुशवाहा समाज के प्रताप कुशवाहा ने कहा कि कुड़मियों के मन में आदिवासी बनने का विचार हाल के कुछ वर्षों से ही आया है. इसके पीछे उनकी राजनीतिक मंशा है. प्रवीण कच्छप ने कहा कि कुड़मियों को अपनी असंवैधानिक जिद छोड़ देनी चाहिए. क्योंकि, वे कभी भी आदिवासी नहीं बन सकते. कुड़मियों को हमेशा कृषक जाति के रूप में ही सूचीबद्ध किया गया है.

सबसे पहले समुदाय के लोग मोरहाबादी मैदान पहुंचे. और यहां से आक्रोश मार्च के रूप में लोगों का हुजूम, पद्म रामदयाल मुंडा Football स्टेडियम पहुंचा, जिसके बाद यह आक्रोश मार्च जनसभा महारैली के रूप में तब्दील हो गया.

इस दौरान आदिवासी संगठन ने एकजुट होकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया. पारंपरिक हथियारों के साथ महारैली में शामिल होकर एक स्वर में चेतावनी दी गई कि वह अपने हक और अधिकार के लिए पूरी तरह से सजग और जागरूक है. यदि कुरमी समुदाय उनकी हकमारी में सेंध लगाता है तो आदिवासी समुदाय खामोश नहीं बैठेगा.

कई राज्यों के अलग अलग हिस्सों से पहुंचे समुदाय पारंपरिक लिबास में तीर धनुष, भाला, हंसिया, दाब जैसे पारंपरिक हथियार से लैस दिखे.

महारैली में मुख्य रूप से केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी नारी सेना, आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा समिति, आदिवासी एकता मंच, आदिवासी अधिकार मंच सहित अन्य विभिन्न आदिवासी-सामाजिक संगठनों से जुड़े महिला-पुरुष सरना झंडे और परंपरागत हरवे हथियार के साथ मौजूद थे.

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(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar

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