सिरसा, 4 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . प्रख्यात चिंतक डॉ. सुखदेव सिंह ने कहा कि मानवीय आजादी, समानता एवं सामाजिक न्याय के पक्षधर गुरु तेग बहादुर जी ने भिन्न धार्मिक मतैक्य वाले समुदाय के मानवीय अधिकारों की रक्षार्थ अपने समय की दमनकारी सत्ता को सीधी चुनौती दी. दुनिया भर में आध्यात्मिक रहबरों ने अपने समुदाय के लोगों के लिए महान बलिदान दिए हैं परंतु भिन्न मतैक्य के लोगों के लिए शहादत देकर गुरु तेग बहादुर जी ने जो प्रतिमान स्थापित किए है, वह उदाहरणीय एवं अनुकरणीय हैं.
डॉ. सुखदेव सिंह Saturday को सिरसा के नेशनल कॉलेज में गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहादत वर्ष के उपलक्ष्य मेें ‘ गुरु तेग बहादुर जी: शब्द एवं शहादत’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी की शहादत बहुराष्ट्रीयता, बहुधार्मिक, बहुभाषी एवं सहअस्तित्ववादी बहुसंस्कृति को एक मजबूत वैचारिक आधार प्रदान करने में सक्षम है. गुरु तेग बहादुर जी ने यह समझ लिया था कि जालिम सत्ता के विरुद्ध सिर्फ तर्क के साथ नहीं लड़ा जा सकता बल्कि लोक लहर खड़ी करने की जरूरत है. अपने इन विचारों का प्रचार प्रसार करने के लिए उन्होंने दो लम्बी यात्राएं की.
इस अवसर पर सुरिंदर सिंह वैदवाला ने कहा कि इस सेमिनार से गुरु तेग बहादुर जी शहादत से संबंधित उन पहलुओं का भी पता चला जिनका अकसर जिक्र नहीं किया जाता. उन्होंने कहा कि आज भी साम्प्रदयिक आधार पर बांटने की कोशिशें हो रहीं हैं इसलिए मानवतावादी पहुंच अपनाने की जरूरत है. गुरभेज सिंह गुराया ने कहा कि सिख गुरुओं की परंपरा ज्ञान की परंपरा है तथा ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति को निर्भय बनाकर सत्ता से लडऩे का बल पैदा करती है. नेशनल कालेज के प्राचार्य प्रो. हरजिंदर सिंह ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी की शहादत व उनके शब्द आज के दौर में उस समय से भी ज्यादा प्रासंगिक हैं.
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(Udaipur Kiran) / Dinesh Chand Sharma
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