नई दिल्ली, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अब उस मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां कभी लाइलाज मानी जाने वाली बीमारियों का इलाज न केवल संभव हो गया है, बल्कि उन्हें पूरी तरह खत्म करने की दिशा में ठोस कदम भी उठाए जा रहे हैं। हाल ही में एक चौंकाने वाला दावा सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि कैंसर, अंधापन और लकवा (पैरालिसिस) जैसी गंभीर बीमारियां वर्ष 2030 तक पूरी तरह समाप्त हो सकती हैं। यह दावा बुडापेस्ट के एक मेडिकल छात्र और डिजिटल क्रिएटर क्रिस क्रिसैंथू ने किया है, जिन्होंने बताया कि दुनिया भर के वैज्ञानिक उन्नत वैक्सीन, आधुनिक उपचार तकनीकों और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर इन बीमारियों को खत्म करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं।
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क्रिस क्रिसैंथू के मुताबिक,
“2030 तक जिन तीन बीमारियों को पूरी तरह खत्म करने की उम्मीद है, उनमें पहली है — कैंसर। अब कीमोथेरेपी को भूल जाइए, शोधकर्ता mRNA कैंसर वैक्सीन का उपयोग कर रहे हैं, जो आपके इम्यून सिस्टम को इस तरह प्रशिक्षित करती है कि वह ट्यूमर पर सेना की तरह हमला करे। व्यक्तिगत वैक्सीन, जेनेटिक एडिटिंग और छोटे अणु वाली दवाएं फाइनल टेस्टिंग स्टेज में हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि कैंसर जल्द ही न केवल इलाज योग्य होगा, बल्कि नियंत्रण में भी रखा जा सकेगा और घातक नहीं रहेगा।”
दूसरी बीमारी — अंधापन (Blindness)
जीन एडिटिंग और स्टेम सेल थेरेपी की मदद से रेटिनल बीमारियों से पीड़ित मरीज फिर से देखने में सक्षम हो रहे हैं। कुछ प्रोजेक्ट्स ने पहले ही दो अंधे मरीजों की आंखों की रोशनी लौटा दी है। प्राइम एडिटिंग नामक नई तकनीक उन जेनेटिक म्यूटेशन को ठीक कर सकती है, जो वंशानुगत अंधेपन का कारण बनते हैं।
तीसरी बीमारी — लकवा (Paralysis)
चीन में दो ऐसे मरीज, जो पूरी तरह लकवाग्रस्त थे, दिमाग में लगाए गए इम्प्लांट और स्पाइनल कॉर्ड स्टिम्युलेशन के संयोजन से फिर से चलने लगे। इसमें दिमाग से सीधे पैरों को सिग्नल भेजे गए, जिससे रीढ़ की चोट को बायपास किया जा सका।
इस दावे पर इंटरनेट पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। एक यूजर ने लिखा, “विज्ञान वाकई अद्भुत है।” दूसरे ने टिप्पणी की, “जब तक दवा उद्योग और कैंसर उद्योग पैसा कमाते रहेंगे, तब तक इसका इलाज कभी पूरी तरह नहीं मिलेगा। यह बहुत लाभदायक है। काश यह सच होता, लेकिन अमेरिका में सिर्फ पैसा चलता है।” एक और यूजर ने सवाल किया, “अगर 2030 तक अंधापन खत्म हो जाएगा, तो क्या वे जीन थेरेपी और स्टेम सेल का उपयोग करके निकट दृष्टि और दूर दृष्टि की समस्या भी खत्म कर देंगे? आंख के डॉक्टर के पास जाने से छुटकारा मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।” किसी ने लिखा, “डायबिटीज भी। चीन के शोधकर्ताओं ने इसका इलाज खोज लिया है।”
दूसरे ने कहा, “मैं सोच रहा था कि आप HIV का जिक्र करेंगे, क्योंकि इसके इलाज के करीब होने की भी खबरें आ रही हैं।” एक और यूजर ने जोड़ा, “उम्मीद है कि यह इलाज हर जरूरतमंद को उपलब्ध और किफायती होगा।”
दुनिया में कैंसर के मामलों और मौतों को कम करने के लिए, सटीक डेटा बेहद महत्वपूर्ण है। हाल ही में द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन “Unveiling the Cancer Epidemic in India: A Glimpse into GLOBOCAN 2022 and Past Patterns” ने भारत में कैंसर के मामलों और मृत्यु दर का विश्लेषण किया। यह रिपोर्ट ग्लोबल कैंसर ऑब्ज़र्वेटरी (GLOBOCAN) 2022 के आंकड़ों पर आधारित है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि -
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कुल कैंसर मामलों में भारत का स्थान दुनिया में तीसरा है।
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कैंसर से होने वाली मौतों में भारत दूसरे स्थान पर है।
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जबकि ग्लोबल क्रूड रेट में भारत 121वें स्थान पर है।
अध्ययन के मुताबिक, उम्र बढ़ने के साथ कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ता है। बच्चों और युवाओं में इसका जोखिम सबसे कम है, लेकिन मध्य आयु वर्ग और बुजुर्गों में इसका खतरा और मृत्यु दर सबसे ज्यादा है।
कैंसर भारत में इतना घातक क्यों?भारत में कैंसर मृत्यु दर के ऊंचे होने के पीछे कई कारण हैं -
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देर से निदान (Late Diagnosis) — ग्रामीण और गरीब इलाकों में जांच सुविधाओं की कमी।
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अज्ञानता और लापरवाही — शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करना।
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आधुनिक इलाज तक सीमित पहुंच — उन्नत चिकित्सा तकनीक सिर्फ बड़े शहरों में उपलब्ध।
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जीवनशैली और पर्यावरणीय कारक — प्रदूषण, अस्वस्थ आहार, तंबाकू और शराब का सेवन।
चिकित्सा विज्ञान ने पिछले दशक में mRNA वैक्सीन, CRISPR जीन एडिटिंग, स्टेम सेल रिसर्च और न्यूरो-इम्प्लांट जैसी तकनीकों में बड़ी छलांग लगाई है।
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कैंसर के लिए — mRNA वैक्सीन और जेनेटिक एडिटिंग क्लिनिकल ट्रायल के अंतिम चरण में हैं।
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अंधेपन के लिए — कई देशों में जीन थेरेपी से मरीजों को दृष्टि लौटाने में सफलता मिली है।
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लकवे के लिए — न्यूरो-इम्प्लांट और स्पाइनल स्टिम्युलेशन ने मरीजों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं।
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि वैज्ञानिक स्तर पर सफलता संभव है, लेकिन वास्तविक चुनौती इन तकनीकों को बड़े पैमाने पर, कम लागत पर, और हर ज़रूरतमंद तक पहुंचाने की होगी।
आर्थिक और नैतिक पहलू भी अहमकुछ विशेषज्ञों का मानना है कि दवा उद्योग के आर्थिक हित भी इन तकनीकों के व्यापक उपयोग में बाधा बन सकते हैं। महंगे इलाज गरीब देशों में मरीजों की पहुंच से बाहर हो सकते हैं। इसके अलावा, जीन एडिटिंग जैसी तकनीकों के नैतिक पहलुओं पर भी वैश्विक बहस जारी है।
आम जनता के लिए इसका मतलबअगर यह दावे सच साबित होते हैं तो 2030 का दशक चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में स्वर्णिम युग कहलाएगा।
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लाखों कैंसर मरीज लंबे और स्वस्थ जीवन जी पाएंगे।
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अंधे लोग फिर से रोशनी देख सकेंगे।
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लकवाग्रस्त लोग दोबारा अपने पैरों पर खड़े हो पाएंगे।
यह न केवल चिकित्सा क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी एक बड़ी क्रांति होगी। कैंसर, अंधापन और लकवा — ये तीनों बीमारियां आज लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही हैं। इनका पूरी तरह समाप्त होना एक सपने जैसा लगता है, लेकिन विज्ञान की प्रगति और शोधकर्ताओं की मेहनत से यह सपना अब पहले से कहीं ज्यादा करीब है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या 2030 तक यह लक्ष्य हासिल हो पाता है या नहीं। लेकिन एक बात तय है — चिकित्सा विज्ञान हमें उम्मीद करने का कारण दे रहा है, और यह उम्मीद ही आने वाले कल को बेहतर बना सकती है।
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