नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने पर बड़ी बात कही है। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की बेंच ने बुधवार को कहा कि सेक्स एजुकेशन कम उम्र में ही शुरू करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को यौवन के बाद होने वाले बदलाव और संयम बरतने के बारे में जागरूक करने की जरूरत है। कोर्ट ने इसके साथ ही नाबालिग से रेप के 15 साल के आरोपी की जमानत की पुष्टि की। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित और आरोपी दोनों ही किशोर हैं। कोर्ट ने साथ ही ये चिंता भी जताई कि 9वीं क्लास से सेक्स एजुकेशन देने का मौजूदा ढांचा अपर्याप्त है।
कोर्ट ने कहा कि यूपी के पाठ्यक्रम में 9वीं क्लास से ही सेक्स एजुकेशन की शिक्षा शामिल है। संबंधित अफसरों को विचार करना और सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए कि यौवन के बाद बदलावों और सावधानियों के बारे में कम उम्र से ही सेक्स शिक्षा दी जाए। दरअसल, रेप के आरोपी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर याचिका दी थी, जिसमें उसकी जमानत खारिज कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने बीते सितंबर महीन में अंतरिम आदेश जारी कर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की ओर से तय शर्तों पर उसे रिहा करने का निर्देश दिया था। इस जमानत को अब स्थायी कर दिया गया है।
इससे पहले 12 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा था कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन किस तरह दी जाती है। जिस पर संभल के डीएम ने 6 अक्टूबर को हलफनामा देकर पाठ्यक्रम की जानकारी दी थी। मामला 20 अक्टूबर 2023 को संभल के हयात नगर थाने में 10वीं की छात्रा के शिकायत का है। उसने आरोप लगाया था कि आरोपी से कई महीने पहले परिचय हुआ। फिर उसने घर ले जाकर उससे रेप किया। जिससे वो गर्भवती हो गई। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने आरोपी को नाबालिग घोषित किया, लेकिन जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को सही बताया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि अपराध गंभीर है और पीड़ित बच्ची की उम्र देखते हुए आरोपी को जमानत पर छोड़ना उचित नहीं है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि पीड़ित की सहमति का महत्व नहीं है। हाईकोर्ट ने बचाव पक्ष की दलील ये कहकर खारिज की थी कि मामला दो किशोरों के बीच सहमति से बने संबंध का था। कोर्ट ने कहा था कि आरोप की प्रकृति देखते हुए नाबालिग होना जमानत देने के लिए पुनरीक्षणकर्ता के पक्ष में परिस्थिति नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स एजुकेशन पर जो टिप्पणी की है, वो दिसंबर 2024 में उसके उस फैसले पर आधारित है, जिसमें बाल विवाह से निपटने के लिए सेक्स एजुकेशन की केंद्रीयता पर जोर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि ऐसी शिक्षा विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की ओर से निर्धारित ढांचे के अनुरूप बनाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया था कि यौन शिक्षा को प्रजनन स्वास्थ्य से आगे बढ़ाकर बाल विवाह, लैंगिक समानता और कम उम्र में शादी से शारीरिक और मानसिक तौर पर होने वाले नतीजों के कानूनी पहलुओं को भी शामिल किया जाए। कोर्ट ने कहा था कि सेक्स एजुकेशन की विषयवस्तु उम्र के हिसाब से और सांस्कृतिक तौर पर संवेदनशील होने के साथ ही बच्चों को शादी में देरी के महत्व और उनके कल्याण और भविष्य के अवसरों पर बड़े असर को समझाने के लिए मजबूत करने वाला भी होना चाहिए।
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