यह एक ऐसी लड़ाई है,जो अब तक किसी ने नहीं लड़ी थी। एक ऐसा दुश्मन,जो आंखों से दिखाई नहीं देता,लेकिन उसका हमला सबसे घातक होता है। हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं,वह अब सिर्फ हमारे फेफड़ों को ही नहीं,बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी के भविष्य को भी बर्बाद कर रही है।वायु प्रदूषण आज सिर्फ बड़ों के लिए ही खतरा नहीं है,यह उन मासूमों के लिए'साइलेंट किलर'बन चुका है जो अभी मां के गर्भ में हैं। जब एक गर्भवती मां ज़हरीली हवा में सांस लेती है,तो वह अनजाने में ही अपने बच्चे को एक ऐसे युद्ध में धकेल देती है,जहां उसकी हार की आशंका बहुत ज़्यादा होती है। यह कोई डरावनी कहानी नहीं,बल्कि विज्ञान द्वारा प्रमाणित एक कड़वी हकीकत है,खासकर भारत जैसे देशों के लिए,जहां दुनिया के सबसे ज़्यादा नवजात बच्चे अपना पहला महीना भी पूरा नहीं देख पाते।पहली जंग: मां की कोखएक बच्चे के लिए दुनिया का सबसे सुरक्षित ठिकाना उसकी मां की कोख होती है,लेकिन प्रदूषण अब इस किले में भी सेंध लगा चुका है। जब एक मां सांस लेती है,तो हवा में मौजूद ज़हरीले कण (धूल,धुआं,केमिकल) उसके खून में मिलकर सीधे बच्चे तक पहुंच जाते हैं।इसका नतीजा बेहद खौफनाक होता है:मौत:कई बार बच्चा दुनिया में आने से पहले ही दम तोड़ देता है।कमजोरी:पैदा होता भी है,तो अक्सर कमजोर,कम वजन का और समय से पहले पैदा हो जाता है।यह होता कैसे है?विज्ञान कहता है कि ये ज़हरीले कण मां के शरीर में एक तरह की सूजन पैदा कर देते हैं और बच्चे तक पहुंचने वाले ऑक्सीजन और पोषण को रोक देते हैं। इससे बच्चे के फेफड़ों और दिमाग का विकास गर्भ में ही रुकने लगता है। मां की बीमारियों से लड़ने की ताकत कमजोर पड़ जाती है,जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।ये कमजोर बच्चे जन्म के बाद निमोनिया,दस्त और पीलिया जैसी आम बीमारियों से भी नहीं लड़ पाते।जिंदगी भर का'ज़ख्म'गर्भ में प्रदूषण का ज़हर झेलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं,तो यह उनकी ज़िंदगी भर का'ज़ख्म'बन जाता है।डायबिटीज:बड़े होने पर इन बच्चों में डायबिटीज जैसी बीमारियां होने का खतरा ज़्यादा होता है।कमजोर फेफड़े:गर्भ में फेफड़ों का विकास ठीक से न होने के कारण ये बच्चे ज़िंदगी भर सांस की बीमारियों से जूझते हैं।कमजोर दिमाग:प्रदूषण बच्चे के दिमागी विकास पर भी गहरा असर डालता है।गरीब घरों के बच्चों पर यह मार दोगुनी पड़ती है। न अच्छा इलाज,न साफ माहौल,जिससे वे इस चक्रव्यूह से कभी बाहर ही नहीं निकल पाते।सबसे मासूम शिकार:5साल से छोटे बच्चे5साल से कम उम्र के बच्चे प्रदूषण के सबसे आसान शिकार होते हैं,क्योंकि उनके शरीर का हर अंग अभी बन ही रहा होता है।रुका हुआ विकास:ज़हरीली हवा बच्चों के फेफड़ों को ठीक से विकसित ही नहीं होने देती।दिमाग पर असर:सोचने-समझने की शक्ति का कम हो जाना,ध्यान न लगना,एक जगह टिक कर न बैठ पाना (ADHD)जैसी समस्याएं सीधे तौर पर प्रदूषण से जुड़ी पाई गई हैं।थोड़ा प्रदूषण भी खतरनाक:वैज्ञानिकों का कहना है कि कम मात्रा में भी प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों को हमेशा के लिए कमजोर बना सकता है,जो जवानी में गंभीर बीमारियां बनकर सामने आती हैं।भारत में हकीकत और भी डरावनीभारत जैसे देशों में यह समस्या एक महामारी का रूप ले चुकी है। यहां फैक्ट्रियों का धुआं,गाड़ियों का ज़हर और कूड़ा जलाने से उठने वाला धुआं हवा में घुला रहता है। चौंकाने वाला आंकड़ा यह है किभारत में दुनिया के25%नवजात बच्चे पहले महीने में ही दम तोड़ देते हैंऔर इसका एक सबसे बड़ा कारण यही प्रदूषण है।गरीबी इस आग में घी का काम करती है। गरीब परिवारों के बच्चे उसी ज़हरीली हवा में खेलते हैं,उसी माहौल में बड़े होते हैं,जिससे यह समस्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती है। यह एक ऐसा संकट है,जिस पर अगर आज ध्यान नहीं दिया गया,तो कल बहुत देर हो जाएगी।
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