दुशांबे/नई दिल्ली: भारत अब ताजिकिस्तान में रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण, अयनी एयरबेस का संचालन नहीं करता है। भारत ने साल 2002 से इस एयरबेस के डेवलपमेंट और ऑपरेशन में मदद की थी। हालांकि इसके बंद होने की खबरें मंगलवार को आईं हैं, लेकिन पता चला है कि असल में ये एयरबेस साल 2022 में ही भारत के हाथ से निकल गया था। दिप्रिंट ने सूत्रों के हवाले से बताया है, कि भारत ताजिकिस्तान के साथ मिलकर लीज के तहत इस एयरबेस को ऑपरेट कर रहा था। जिसके बाद साल 2021 में, ताजिकिस्तान ने भारत को सूचित किया था कि लीज अवधि आगे नहीं बढ़ाई जाएगी और इसलिए, नई दिल्ली को वहां तैनात अपने सैनिकों और उपकरणों को वापस बुलाना होगा।
अयनी एयरबेस से भारत का हटना दक्षिण एशिया के रणनीतिक संतुलन में बहुत बड़ा बदलाव माना जा रहा है। अयनी एयरबेस की खासियत इसकी लोकेशन थी। यह एयरबेस अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन के करीब होने के वजह से भारत को जियो-पॉलिटिकल बढ़त देता था। भारत ने साल 2002 में अमेरिका के वॉर ऑन टेरर शुरू होने के दौरान इस जर्जर सोवियत-कालीन बेस को आधुनिक रूप देने में करीब 100 मिलियन डॉलर खर्च किए थे।
भारत के हाथ से निकला अयनी एयरबेस
दिप्रिंट ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भारत की वापसी की प्रक्रिया 2022 में ही पूरी हो गई थी, लेकिन अब तक इसे गुप्त रखा गया था। ऐसा माना जा रहा है कि ताजिकिस्तान, लीज अवधि नहीं बढ़ाना चाहता था क्योंकि रूस और चीन उस एयरबेस पर गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों को लेकर दबाव बना रहे थे। हालांकि भारत के पास वहां कोई स्थायी हवाई संपत्ति नहीं थी, फिर भी दो-तीन भारतीय सैन्य हेलीकॉप्टर, जो ताजिकिस्तान को उपहार में दिए गए थे, भारत उसे ऑपरेट करता था। कुछ समय के लिए वहां पर Su-30MKI फाइटर जेट भी वहां तैनात किया गया था। आपको बता दें कि भारत ने 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अपने नागरिकों को निकालने के लिए इस एयरबेस का काफी इस्तेमाल किया था।
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से करीब 15 किलोमीटर पश्चिम स्थित यह एयरबेस कभी खंडहर था, लेकिन भारत ने इसे 3200 मीटर लंबी रनवे, आधुनिक ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम, हैंगर और ईंधन भंडारण सुविधाओं के साथ पूर्ण विकसित सैन्य ठिकाने में बदल दिया था। यह इतना शानदार एयरबेस बन गया था कि यहां से IL-76 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और सुखोई-30MKI जैसे भारी विमानों का ऑपरेशन भी हो रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, इस बेस पर लगभग 150 भारतीय कर्मी, जिनमें बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) के सदस्य भी शामिल थे, वो तैनात थे। भारत और ताजिकिस्तान इसे संयुक्त रूप से संचालित करते थे, लेकिन 2021 में ताजिकिस्तान ने संकेत दे दिया था कि वह लीज बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। इसके बाद भारत ने 2022 में चुपचाप अपने कर्मियों और उपकरणों को वापस बुला लिया।
चीन और रूस बना रहा था ताजिकिस्तान पर प्रेशर!
अयनी एयरबेस भारत की सुरक्षा और रणनीति के लिहाज से काफी खास था। क्योंकि ताजिकिस्तान की सीमाएं पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान से सटी हैं। यहां से उड़ान भरने वाले भारतीय लड़ाकू विमान पाकिस्तान के शहर पेशावर तक आसानी से पहुंच सकते थे, जिससे इस्लामाबाद पर दो-मोर्चा दबाव बनता। यही नहीं, इस ठिकाने से भारत को अफगानिस्तान में मानवीय या रणनीतिक मिशनों के लिए पाकिस्तान से गुजरे बिना सीधी पहुंच भी मिलती थी। लेकिन अब इस ठिकाने के बंद होने से भारत की सेंट्रल एशिया में सैन्य पहुंच पर असर पड़ेगा, खासकर ऐसे वक्त पर, जब चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए इस क्षेत्र में अपना दबदबा मजबूत कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस और चीन के प्रेशर की वजह से ऐसा हुआ है।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पूर्व वायुसेना प्रमुख बी.एस. धनोआ ने इस अड्डे की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसका वित्तपोषण विदेश मंत्रालय द्वारा किया गया था। आपको बता दें कि इस एयरबेस को अकसर, एक अन्य हवाई अड्डे, दक्षिणी ताजिकिस्तान में उत्तरी अफगानिस्तान की सीमा के पास स्थित फारखोर से भ्रमित किया जाता है। 1990 के दशक में भारत ने फारखोर शहर में एक अस्पताल भी चलाया था। भारतीय वायु सेना ने एयरबेस पर काम शुरू करने के लिए तत्कालीन ग्रुप कैप्टन नसीम अख्तर (सेवानिवृत्त) को नियुक्त किया था।
अयनी एयरबेस से भारत का हटना दक्षिण एशिया के रणनीतिक संतुलन में बहुत बड़ा बदलाव माना जा रहा है। अयनी एयरबेस की खासियत इसकी लोकेशन थी। यह एयरबेस अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन के करीब होने के वजह से भारत को जियो-पॉलिटिकल बढ़त देता था। भारत ने साल 2002 में अमेरिका के वॉर ऑन टेरर शुरू होने के दौरान इस जर्जर सोवियत-कालीन बेस को आधुनिक रूप देने में करीब 100 मिलियन डॉलर खर्च किए थे।
भारत के हाथ से निकला अयनी एयरबेस
दिप्रिंट ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भारत की वापसी की प्रक्रिया 2022 में ही पूरी हो गई थी, लेकिन अब तक इसे गुप्त रखा गया था। ऐसा माना जा रहा है कि ताजिकिस्तान, लीज अवधि नहीं बढ़ाना चाहता था क्योंकि रूस और चीन उस एयरबेस पर गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों को लेकर दबाव बना रहे थे। हालांकि भारत के पास वहां कोई स्थायी हवाई संपत्ति नहीं थी, फिर भी दो-तीन भारतीय सैन्य हेलीकॉप्टर, जो ताजिकिस्तान को उपहार में दिए गए थे, भारत उसे ऑपरेट करता था। कुछ समय के लिए वहां पर Su-30MKI फाइटर जेट भी वहां तैनात किया गया था। आपको बता दें कि भारत ने 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अपने नागरिकों को निकालने के लिए इस एयरबेस का काफी इस्तेमाल किया था।
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से करीब 15 किलोमीटर पश्चिम स्थित यह एयरबेस कभी खंडहर था, लेकिन भारत ने इसे 3200 मीटर लंबी रनवे, आधुनिक ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम, हैंगर और ईंधन भंडारण सुविधाओं के साथ पूर्ण विकसित सैन्य ठिकाने में बदल दिया था। यह इतना शानदार एयरबेस बन गया था कि यहां से IL-76 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और सुखोई-30MKI जैसे भारी विमानों का ऑपरेशन भी हो रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, इस बेस पर लगभग 150 भारतीय कर्मी, जिनमें बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) के सदस्य भी शामिल थे, वो तैनात थे। भारत और ताजिकिस्तान इसे संयुक्त रूप से संचालित करते थे, लेकिन 2021 में ताजिकिस्तान ने संकेत दे दिया था कि वह लीज बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। इसके बाद भारत ने 2022 में चुपचाप अपने कर्मियों और उपकरणों को वापस बुला लिया।
चीन और रूस बना रहा था ताजिकिस्तान पर प्रेशर!
अयनी एयरबेस भारत की सुरक्षा और रणनीति के लिहाज से काफी खास था। क्योंकि ताजिकिस्तान की सीमाएं पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान से सटी हैं। यहां से उड़ान भरने वाले भारतीय लड़ाकू विमान पाकिस्तान के शहर पेशावर तक आसानी से पहुंच सकते थे, जिससे इस्लामाबाद पर दो-मोर्चा दबाव बनता। यही नहीं, इस ठिकाने से भारत को अफगानिस्तान में मानवीय या रणनीतिक मिशनों के लिए पाकिस्तान से गुजरे बिना सीधी पहुंच भी मिलती थी। लेकिन अब इस ठिकाने के बंद होने से भारत की सेंट्रल एशिया में सैन्य पहुंच पर असर पड़ेगा, खासकर ऐसे वक्त पर, जब चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए इस क्षेत्र में अपना दबदबा मजबूत कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस और चीन के प्रेशर की वजह से ऐसा हुआ है।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पूर्व वायुसेना प्रमुख बी.एस. धनोआ ने इस अड्डे की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसका वित्तपोषण विदेश मंत्रालय द्वारा किया गया था। आपको बता दें कि इस एयरबेस को अकसर, एक अन्य हवाई अड्डे, दक्षिणी ताजिकिस्तान में उत्तरी अफगानिस्तान की सीमा के पास स्थित फारखोर से भ्रमित किया जाता है। 1990 के दशक में भारत ने फारखोर शहर में एक अस्पताल भी चलाया था। भारतीय वायु सेना ने एयरबेस पर काम शुरू करने के लिए तत्कालीन ग्रुप कैप्टन नसीम अख्तर (सेवानिवृत्त) को नियुक्त किया था।
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