हैदराबाद : कुछ दिन पहले तेलंगाना के एक दंपति डॉक्टर की धोखेबाजी का शिकार हुए। यूनिवर्सल सृष्टि फर्टिलिटी एंड रिसर्च सेंटर ने लीगल सेरोगेसी के नाम पर उनसे लाखों रुपये लिए। 9 महीने बाद तस्करी से लाई गई बच्ची को जैविक संतान बताकर दे दिया। दो महीने बाद शक होने पर उन्होंने डीएनए टेस्ट कराया तो IVF सेंटर की चालबाजी का खुलासा हुआ। मामला पुलिस थाने तक पहुंचा तो चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) ने बच्ची को कस्टडी में ले लिया। सच सामने आने के बाद भी दंपति का दिल नहीं बदला और उन्होंने बच्ची पर हक जताते हुए कोर्ट चले गए। तेलंगाना हाई कोर्ट ने CWC और शिशु विहार को आदेश दिया कि बच्ची की कस्टडी धोखा खाने वाले कपल को सौंपा जाए।
सच सामने आने पर भी कम नहीं हुआ प्यार
याचिकाकर्ता कपल की वकील अनुराधा चेरुकुरी ने तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि बच्ची के जन्म से पहले ही उनका उससे भावनात्मक लगाव हो गया था। जन्म के बाद दो महीने तक उन्होंने उसकी देखभाल भी की। बच्ची जब बार-बार बीमार रहने लगी तो उन्हें शक हुआ। जब डीएनए टेस्ट से पता चला कि बच्ची उनकी जैविक संतान नहीं है तो चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने बच्ची को अपनी कस्टडी में ले लिया। बॉयोलॉजिकल रिलेशन नहीं होने के बावजूद दंपत्ति बच्ची को अपना मानते हैं। जबतक बच्ची CWC की कस्टडी में रही, दंपति उससे मिलने जाते थे और उसकी जरूरतों का ध्यान रखते थे।
सरकारी वकील ने किया विरोध
महिला एवं बाल कल्याण विभाग के वकील ने इस दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कस्टडी का फैसला भावनाओं के बजाय कानूनी तौर पर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के तहत आता है। उचित प्रक्रिया के बिना बच्ची को दंपत्ति को वापस नहीं दिया जा सकता है।
15 अक्टूबर को फिर होगी सुनवाई
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाज जस्टिस टी. माधवी देवी ने CWC और शिशु विहार को आदेश दिया कि वे बच्ची की कस्टडी तुरंत दंपत्ति को सौंप दें। अपने आदेश में जस्टिस ने कहा कि कोर्ट प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि याचिकाकर्ता और उसके पति IVF सेंटर के घोटाले के शिकार हैं। बच्ची के जन्म प्रमाण पत्र में दंपत्ति को माता-पिता के रूप में दर्शाया गया है। बच्ची दो महीने तक उनकी देखभाल में भी रही है। कमेटी बच्ची के कल्याण के लिए निगरानी कर सकती है। कोर्ट ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी और शिशु विहार को अपना जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी।
सच सामने आने पर भी कम नहीं हुआ प्यार
याचिकाकर्ता कपल की वकील अनुराधा चेरुकुरी ने तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि बच्ची के जन्म से पहले ही उनका उससे भावनात्मक लगाव हो गया था। जन्म के बाद दो महीने तक उन्होंने उसकी देखभाल भी की। बच्ची जब बार-बार बीमार रहने लगी तो उन्हें शक हुआ। जब डीएनए टेस्ट से पता चला कि बच्ची उनकी जैविक संतान नहीं है तो चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने बच्ची को अपनी कस्टडी में ले लिया। बॉयोलॉजिकल रिलेशन नहीं होने के बावजूद दंपत्ति बच्ची को अपना मानते हैं। जबतक बच्ची CWC की कस्टडी में रही, दंपति उससे मिलने जाते थे और उसकी जरूरतों का ध्यान रखते थे।
सरकारी वकील ने किया विरोध
महिला एवं बाल कल्याण विभाग के वकील ने इस दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कस्टडी का फैसला भावनाओं के बजाय कानूनी तौर पर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के तहत आता है। उचित प्रक्रिया के बिना बच्ची को दंपत्ति को वापस नहीं दिया जा सकता है।
15 अक्टूबर को फिर होगी सुनवाई
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाज जस्टिस टी. माधवी देवी ने CWC और शिशु विहार को आदेश दिया कि वे बच्ची की कस्टडी तुरंत दंपत्ति को सौंप दें। अपने आदेश में जस्टिस ने कहा कि कोर्ट प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि याचिकाकर्ता और उसके पति IVF सेंटर के घोटाले के शिकार हैं। बच्ची के जन्म प्रमाण पत्र में दंपत्ति को माता-पिता के रूप में दर्शाया गया है। बच्ची दो महीने तक उनकी देखभाल में भी रही है। कमेटी बच्ची के कल्याण के लिए निगरानी कर सकती है। कोर्ट ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी और शिशु विहार को अपना जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी।
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