किचन में खाना पकाने या स्टोर करने के लिए बर्तन खरीदने का कोई निश्चित समय नहीं होता है। हालाकि बर्तन आप कभी-भी खरीदें जरूरी है कि सही बर्तन की जानकारी होना। आजकल तरह-तरह के मेटल, नॉनस्टिक, प्लास्टिक, मिट्टी और लकड़ी तक के बर्तन भी किचन में पहुंच गए हैं लेकिन सेहत के नजरिए से किन बर्तनों का इस्तेमाल करना ठीक है इसके बारे में बहुत से लोगों को जानकारी नहीं होती है।
किस तरह की चीजें खाने-पकाने के लिए कौन-सा बर्तन सबसे अच्छा होता है? किसे खरीदें और किसे अपनी किचन से दूर करें? इसको लेकर एक्सपर्ट्स के हवाले से लोकेश के. भारती ने जानकारी दी है। ताकि कभी भी बर्तन खरीदते वक्त आप सही सिलेक्शन करें।
चौका बर्तन
लकड़ी से बने चम्मच या दूसरे प्रॉडक्ट हों या फिर मिट्टी के बर्तन जो खाने, पकाने या फिर किसी चीज को फर्मेंट करने के काम आते हैं, उनकी सफाई अच्छी तरह से होनी चाहिए क्योंकि इनके ऊपर मौजूद छोटे-छोटे पोर्स में गंदगी फंस जाती है। फिर बैक्टीरिया, फंगस आदि पनपने लगते हैं। सूखी चीजों जैसे कि दाल, चावल आदि को स्टोर करने के लिए अच्छी क्वॉलिटी का प्लास्टिक भी ठीक है। लेकिन किसी भी तरह के प्लास्टिक में खाने-पीने की गर्म चीजें कभी नहीं रखनी चाहिए। चंद मिनटों के लिए भी नहीं। ऐसा बार-बार करने से कैंसर की वजह बन सकता है। गैस के सीधे संपर्क में रोटी फुलाने को कुछ लोग कैंसर की वजह बताते हैं। ऐसा न कोई सबूत है और न ही कोई स्टडी हुई है। यह पूरी चर्चा सिर्फ अंदाजे से चल रही है। दरअसल, जब रोटी कुछ जल जाती है तो जले हुए हिस्से पर कार्बन फ्लेम की तुलना कोयला, पेट्रोलियम के अधजले फ्लेम से करने लगते हैं।
तांबे के बर्तन
देश में इस बर्तन की उपयोगिता सदियों से रही है। कई जगहों पर आज भी इसका काफी इस्तेमाल होता है। बिरयानी बनाने, पानी रखने आदि के काम में आता है। कॉपर के बर्तन में पानी रखकर पीने से फायदे की बात बताई जाती हैं। मुमकिन है इसमें पानी रखने से पानी में इसका कुछ गुण आ जाए। चूंकि कॉपर हमारे शरीर के कुछ कामों के लिए जरूरी है। कॉपर का उपयोग जहां इम्यूनिटी मजबूत करने में है, वहीं हीमोग्लोबिन बनाने और हड्डियों की मजबूती में भी है।
इसका मतलब यह नहीं कि तांबे के बर्तन में रखे पानी को हम हर दिन, हर वक्त पीते रहें। रात में साफ तांबे के बर्तन में पानी रख दें तो सुबह एक गिलास पीने से काम हो जाएगा। फिर दिनभर सामान्य या गुनगुना पानी पिएं। यह सिलसिला 30 से 40 दिनों तक जारी रख सकते हैं। फिर थोड़ा ब्रेक लेकर यही सिलसिला रिपीट करें। वैसे कॉपर की कमी को हम अमूमन अपने खानपान से पूरी कर लेते हैं।
खासियत
मिट्टी के बर्तन
आज भी कई लोग मिट्टी के बर्तन में दूध उबालते हैं। कुछ लोग खीर भी बनाते हैं। कुल्हड़ वाली चाय सभी को पसंद आती है। मिट्टी के बर्तन में खाने या पीने से मिट्टी में मौजूद कुछ गुण यानी मिनरल्स आदि फूड आइटम्स के साथ शामिल हो सकते हैं। वहीं, ये गुण शामिल हो न हों, पर मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू तो शामिल हो ही जाती है। इससे चाय भी अच्छी लगती है और अगर कोई दूध पिए तो दूध भी।
खासियत
खामियां
सिरेमिक और पोर्सिलेन
कई घरों में इसका उपयोग होता है। इसे अमूमन चिकनी मिट्टी से तैयार किया जाता है। यह हाई हीट को आसानी से बर्दाश्त करता है।
खासियत
कांच के बर्तन
स्टोर करने के लिए इससे बढ़िया बर्तन कोई दूसरा नहीं हो सकता। अचार, चटनी सभी चीजों को स्टोर करने के लिए सबसे बढ़िया है। सर्व करने के लिए भी यह अच्छा है। हां, बच्चों से दूर जरूर रखना पड़ता है।
खासियत
प्लास्टिक के बर्तन
स्टोरेज के इस्तेमाल प्लास्टिक में गर्म चीजों को हरगिज ना रखें। ज्यादा तापमान पर इसका केमिकल बदलने लगता है। अगर प्लास्टिक अच्छी क्वॉलिटी का नहीं है तो खानपान के लिहाज से हरगिज उपयोग न करें। सबसे बड़ी बात यह कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। इसलिए इसका उपयोग जितना कम हो जाए उतना बढ़िया। प्लास्टिक के बर्तन को कभी भी माइक्रोवेव आदि में नहीं रखना चाहिए। फिर भी अच्छी क्वॉलिटी के प्लास्टिक में स्टोर किया जा सकता है। मेटल की तुलना में यह सस्ता है।
नंबर से कैसे पहचानें प्लास्टिक
ब्रैंडेड बोटल, लंच बॉक्स या फिर दूसरे समानों के पीछे ISI लिखा होता है या फिर एक सिंबल बना होता है। दरअसल, अच्छी क्वॉलिटी के प्रॉडक्ट पर इन दोनों या फिर सिंबल का होना जरूरी है। इन सिंबल्स को रेजिन आइडेंटिफिकेशन कोड सिस्टम (RIC) कहते हैं। इन ट्राएंगल्स के बीच में नंबर भी होते हैं। इन नंबरों से ही पता चलता है कि आपके हाथ में जो प्रॉडक्ट है, वह किस तरह की प्लास्टिक से बना है। जैसे कि ..
खासियत
लकड़ी, बांस और पत्ते
बांस और लकड़ी से बनने वाली किचन के लिए उपयोगी सामग्री ज्यादातर ऐसे इलाकों में तैयार होती है जहां जंगल ज्यादा हों। नॉर्थ-ईस्ट, उत्तराखंड और हिमाचल आदि प्रदेशों में बांस में भी कई तरह के व्यंजनों को पकाया जाता है। ये स्वादिष्ट भी होते हैं। इनसे कोई भी नुकसान नहीं होता। कई जगह बांस और लकड़ी से तैयार बर्तनों में भोजन परोसा जाता है। दक्षिण भारत में केले के पत्ते पर खाने का चलन लोगों को बहुत लुभाता है। यह कुदरती भी लगता है। आयुर्वेद में भी इसका गुणगान किया गया है।
खासियत
स्टेनलेस स्टील
इसमें क्रोमियम होता है (कम से कम 10.5%)। इससे यह हवा में ऑक्सीजन से मिलकर एक पतली परत बना देता है जो जंग से बचाती है। इसलिए यह लोहे की तरह जंग नहीं पकड़ता। यह सेहत के लिए सुरक्षित है। इसमें एल्युमिनियम की तरह मेटल भोजन में नहीं घुलती। इसकी सतह चिकनी होती है, जिस पर बैक्टीरिया आसानी से नहीं चिपकते। साबुन और गर्म पानी से आसानी से धुल जाता है। लंबे समय तक चमक बनी रहती है। पकाने, सर्व करने और स्टोर करने, तीनों कामों के लिए उपयुक्त है। प्लेट, गिलास, कड़ाही, प्रेशर कुकर, यहां तक कि पानी की बोतल और लंच बॉक्स तक सब बनते हैं। मोटे बेस वाले स्टेनलेस स्टील के बर्तनों में खाना समान रूप से पकता है और कम चिपकता है। वहीं पतले स्टील बर्तनों में चिपकने की समस्या ज़्यादा होती है।
खासियत
लोहे के बर्तन
ये आमतौर पर 6 तरह के होते हैं: व्रॉट या रॉट आयरन, कार्बन स्टील, ब्लैक आयरन, इनैमल्ड कास्ट आयरन, डक्टाइल आयरन और कास्ट आयरन जिसका इसका उपयोग और चर्चा सबसे ज्यादा है। दरअसल कास्ट आयरन सदियों से भारतीय रसोई का हिस्सा रहा है। लोहे की कढ़ाई, तवा, पतीला या हांडी में पका हुआ खाना अलग ही स्वाद देता है। यह बर्तन धीमी आंच पर समान रूप से गर्मी फैलाते हैं और लंबे समय तक तापमान बनाए रखते हैं। आज भी इसका उपयोग काफी होता है। इसमें पकाने से थोड़ी मात्रा में आयरन खाने में मिलता है जो खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए फायदेमंद है।
खासियत
नॉनस्टिक बर्तन
अगर कम आंच पर किसी चीज को पकाना हो तो नॉनस्टिक बेहतरीन है। अगर कोई इसमें तेल को ज्यादा गर्म कर उसमें चीजें फ्राई करने की कोशिश करे, बार-बार उसमें ऐल्युमिनियम या स्टील आदि धातु की चम्मच चलाई जाए तो यह मुमकिन है कि उस बर्तन की नॉनस्टिक कोटिंग न सिर्फ हट जाएगी बल्कि सब्जी, दाल आदि जो भी खाने की चीज़ बर्तन में मौजूद होगी, उसमें मिल भी जाए। अगर किसी को अपना वजन कम करना हो तो इससे बढ़िया बर्तन दूसरा हो नहीं सकता। इसमें तेल, घी आदि का उपयोग अगर न भी किया जाए और हल्की आंच पर पकाएं तो खाना तैयार हो जाता है। ध्यान रहे कि धातु की चम्मच की जगह लकड़ी की चम्मच का उपयोग हो। इससे नॉनस्टिक कोटिंग नहीं हटेगी। इनसे कैंसर होने की पुष्टि नहीं हुई है।
खासियत
पीतल के बर्तन
पीतल में तांबा और जिंक का मिश्रण होता है। ये दोनों धातुएं शरीर के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं। इनमें पकाया गया भोजन शरीर में तांबे और जिंक का कुछ अंश पहुंचा सकता है जो इम्यूनिटी बढ़ाने और पाचन में मददगार होते हैं। पीतल के बर्तन में कलई या कसार यानी टिन की कोटिंग की जाती है। दही, इमली, नीबू, टमाटर जैसे खट्टे पदार्थों को पीतल में पकाना या रखना हानिकारक हो सकता है।
खासियत
ऐल्युमिनियमजब इसकी खोज हुई थी तो यह सोने से भी ज्यादा महंगी धातु थी, लेकिन आज धातुओं में अमूमन सबसे सस्ती है। आज भी इसका उपयोग उन घरों में ज्यादा किया जाता है जिनकी स्थिति बर्तनों पर ज्यादा पैसे खर्च की नहीं होती या फिर जो इन पर ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते। BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) के नए निर्देश के अनुसार हल्के (लाइटवेट) ऐल्युमिनियम बर्तन को करीब 12 महीने में बदलने की सलाह दी गई है। वहीं, भारी गुणवत्ता वाले ऐल्युमिनियम बर्तन को करीब 24 महीने तक इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं, बर्तन पर उपयोग की जाने वाली ऐल्युमिनियम की ग्रेडिंग (करीब 99% शुद्धता आदि) साफ-साफ लेबल लगाकर बताई जानी चाहिए। एक्सपर्ट का मानना है कि अगर आप ऐल्युमिनियम को लेकर चिंतित हैं तो धीरे-धीरे किचन से कम कर सकते हैं, एकदम से सभी बर्तन हटाने की जरूरत नहीं है।
खासियत
एनोडाइज्ड एल्युमिनियमसामान्य ऐल्युमिनियम की तुलना में यह ज्यादा बेहतर है। एनोडाइजिंग इलेक्ट्रोकेमिकल प्रोसेस से बनाई गई ऑक्साइड की परत है। इससे ऐल्युमिनियम की सतह पर ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की मोटी परत बन जाती है।
खासियत
आयुर्वेद क्या कहता है बर्तनों के बारे में?
एक्सपर्ट पैनल
डिस्क्लेमर: इस लेख में किए गए दावे एक्सपर्ट से मिली जानकारी पर आधारित हैं। एनबीटी इसकी सत्यता और सटीकता जिम्मेदारी नहीं लेता है।
किस तरह की चीजें खाने-पकाने के लिए कौन-सा बर्तन सबसे अच्छा होता है? किसे खरीदें और किसे अपनी किचन से दूर करें? इसको लेकर एक्सपर्ट्स के हवाले से लोकेश के. भारती ने जानकारी दी है। ताकि कभी भी बर्तन खरीदते वक्त आप सही सिलेक्शन करें।
चौका बर्तन
तांबे के बर्तन
इसका मतलब यह नहीं कि तांबे के बर्तन में रखे पानी को हम हर दिन, हर वक्त पीते रहें। रात में साफ तांबे के बर्तन में पानी रख दें तो सुबह एक गिलास पीने से काम हो जाएगा। फिर दिनभर सामान्य या गुनगुना पानी पिएं। यह सिलसिला 30 से 40 दिनों तक जारी रख सकते हैं। फिर थोड़ा ब्रेक लेकर यही सिलसिला रिपीट करें। वैसे कॉपर की कमी को हम अमूमन अपने खानपान से पूरी कर लेते हैं।
खासियत
- प्राचीन काल से पानी और दूध रखने में उपयोग
- कॉपर में ऐंटिमाइक्रोबियल गुण होते हैं, पानी शुद्ध रहता है।
- बहुत जल्दी गर्म होता है, पकाने में ईंधन कम खर्च होता है।
- अम्लीय पदार्थों (खट्टे) के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करता है, जिससे कॉपर टॉक्सिसिटी का खतरा हो सकता है।
- इसके बर्तन में टिन की परत चढ़ाकर उपयोग करना जरूरी है।
मिट्टी के बर्तन
आज भी कई लोग मिट्टी के बर्तन में दूध उबालते हैं। कुछ लोग खीर भी बनाते हैं। कुल्हड़ वाली चाय सभी को पसंद आती है। मिट्टी के बर्तन में खाने या पीने से मिट्टी में मौजूद कुछ गुण यानी मिनरल्स आदि फूड आइटम्स के साथ शामिल हो सकते हैं। वहीं, ये गुण शामिल हो न हों, पर मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू तो शामिल हो ही जाती है। इससे चाय भी अच्छी लगती है और अगर कोई दूध पिए तो दूध भी।
खासियत
- कुदरती और पूरी तरह से सुरक्षित है।
- खाना धीरे-धीरे पकता है, स्वाद और सुगंध अलग ही होती है।
- मटका पानी को ठंडा और शुद्ध रखता है ।
- न्यूट्रिएंट्स का थोड़ा-बहुत फायदा मुमकिन है।
खामियां
- ये जल्दी टूटते हैं, ज्यादा तैलीय और तीखे मसाले वाले भोजन से दरारें आ सकती हैं।
- सफाई करना थोड़ा मुश्किल है। इनके टूटने की आशंका इसी दौरान ज्यादा होती है।
सिरेमिक और पोर्सिलेन
कई घरों में इसका उपयोग होता है। इसे अमूमन चिकनी मिट्टी से तैयार किया जाता है। यह हाई हीट को आसानी से बर्दाश्त करता है।
खासियत
- दिखने में आकर्षक होते हैं, गर्मी को लंबे समय तक बनाए रखता है।
- माइक्रोवेव और ओवन-फ्रेंडली हैं और सेहत के लिए सुरक्षित हैं।
- सस्ते कोटेड बर्तनों में लेड या दूसरे टॉक्सिन हो सकते हैं।
- खरोंच लगने पर कोटिंग हट सकती है, महंगे और नाजुक होते हैं।
कांच के बर्तन
स्टोर करने के लिए इससे बढ़िया बर्तन कोई दूसरा नहीं हो सकता। अचार, चटनी सभी चीजों को स्टोर करने के लिए सबसे बढ़िया है। सर्व करने के लिए भी यह अच्छा है। हां, बच्चों से दूर जरूर रखना पड़ता है।
खासियत
- भोजन स्टोर करने में सबसे सेफ हैं क्योंकि रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं करता है।
- पारदर्शी, इसलिए अंदर क्या है साफ दिखता है।
- अचार, शहद, घी, मसाले रखने के लिए बेहतरीन
- बोरोसिलिकेट ग्लास माइक्रोवेव और फ्रीजर-फ्रेंडली (फ्रीज में रखने लायक) भी है।
- नाजुक और भारी, अचानक तापमान बदलने पर टूट सकता है।
- यह थोड़ा महंगा होता है।
प्लास्टिक के बर्तन
स्टोरेज के इस्तेमाल प्लास्टिक में गर्म चीजों को हरगिज ना रखें। ज्यादा तापमान पर इसका केमिकल बदलने लगता है। अगर प्लास्टिक अच्छी क्वॉलिटी का नहीं है तो खानपान के लिहाज से हरगिज उपयोग न करें। सबसे बड़ी बात यह कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। इसलिए इसका उपयोग जितना कम हो जाए उतना बढ़िया। प्लास्टिक के बर्तन को कभी भी माइक्रोवेव आदि में नहीं रखना चाहिए। फिर भी अच्छी क्वॉलिटी के प्लास्टिक में स्टोर किया जा सकता है। मेटल की तुलना में यह सस्ता है।
नंबर से कैसे पहचानें प्लास्टिक
ब्रैंडेड बोटल, लंच बॉक्स या फिर दूसरे समानों के पीछे ISI लिखा होता है या फिर एक सिंबल बना होता है। दरअसल, अच्छी क्वॉलिटी के प्रॉडक्ट पर इन दोनों या फिर सिंबल का होना जरूरी है। इन सिंबल्स को रेजिन आइडेंटिफिकेशन कोड सिस्टम (RIC) कहते हैं। इन ट्राएंगल्स के बीच में नंबर भी होते हैं। इन नंबरों से ही पता चलता है कि आपके हाथ में जो प्रॉडक्ट है, वह किस तरह की प्लास्टिक से बना है। जैसे कि ..
- पॉलिथिलीन-टेरेफथालेट (PET) से बना है यह प्रॉडक्ट। खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग के लिए।
- यह प्रॉडक्ट हाई-डेंसिटी पॉलिथिलीन (HDPE) से बना है। दूध, पानी, जूस आदि के लिए।
- पॉलिविनाइलीडीन क्लोराइड (PVDC) से बना है प्रॉडक्ट। कन्फेक्शनरी और डेयरी प्रॉडक्ट आदि के लिए।
खासियत
- हल्के और सस्ते, बच्चों के लिए सुरक्षित क्योंकि टूटने का डर नहीं।
- ढेरों डिजाइन और रंगों में मौजूद
- गर्म भोजन रखने पर BPA, थैलेट्स जैसे हानिकारक केमिकल खाने में घुल सकते हैं।
- लंबे समय तक स्टोर करने के लिए सुरक्षित नहीं और उपयोग से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
लकड़ी, बांस और पत्ते
बांस और लकड़ी से बनने वाली किचन के लिए उपयोगी सामग्री ज्यादातर ऐसे इलाकों में तैयार होती है जहां जंगल ज्यादा हों। नॉर्थ-ईस्ट, उत्तराखंड और हिमाचल आदि प्रदेशों में बांस में भी कई तरह के व्यंजनों को पकाया जाता है। ये स्वादिष्ट भी होते हैं। इनसे कोई भी नुकसान नहीं होता। कई जगह बांस और लकड़ी से तैयार बर्तनों में भोजन परोसा जाता है। दक्षिण भारत में केले के पत्ते पर खाने का चलन लोगों को बहुत लुभाता है। यह कुदरती भी लगता है। आयुर्वेद में भी इसका गुणगान किया गया है।
खासियत
- कुदरती और इको-फ्रेंडली, बांस के कटोरे/प्लेटें हल्की और सुंदर होती हैं।
- लकड़ी के चम्मच और बेलन भोजन के स्वाद को नहीं बदलते।
- नमी से खराब हो सकते हैं और ज्यादा टिकाऊ नहीं।
- बैक्टीरिया पनपने का खतरा रहता है, इसलिए नियमित सफाई जरूरी है।
स्टेनलेस स्टील
खासियत
- सबसे ज्यादा प्रचलित, मजबूत, जंगरोधी और लंबे समय तक टिकाऊ।
- सेहत के लिए सुरक्षित, भोजन में धातु का रिसाव न के बराबर
- साथ ही इसमें नींबू, टमाटर, दही जैसी खट्टी चीज़ें भी इसमें सुरक्षित पकाई और स्टोर की जा सकती हैं।
- आसान सफाई, डिशवॉशर फ्रेंडली
- गर्मी धीरे पकड़ते हैं, इसलिए गैस खपत थोड़ी ज्यादा होती है।
- जल्दी ठंडा भी हो जाता है।
- पतले बेस वाले बर्तन में कभी-कभी नीचे चिपक जाता है (नॉनस्टिक न हो तो) ।
लोहे के बर्तन
ये आमतौर पर 6 तरह के होते हैं: व्रॉट या रॉट आयरन, कार्बन स्टील, ब्लैक आयरन, इनैमल्ड कास्ट आयरन, डक्टाइल आयरन और कास्ट आयरन जिसका इसका उपयोग और चर्चा सबसे ज्यादा है। दरअसल कास्ट आयरन सदियों से भारतीय रसोई का हिस्सा रहा है। लोहे की कढ़ाई, तवा, पतीला या हांडी में पका हुआ खाना अलग ही स्वाद देता है। यह बर्तन धीमी आंच पर समान रूप से गर्मी फैलाते हैं और लंबे समय तक तापमान बनाए रखते हैं। आज भी इसका उपयोग काफी होता है। इसमें पकाने से थोड़ी मात्रा में आयरन खाने में मिलता है जो खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए फायदेमंद है।
खासियत
- भारतीय रसोई का परंपरागत हिस्सा है कढ़ाई और तवे में इस्तेमाल ज्यादा होता है इसमें खाना स्वादिष्ट और सुगंधित बनता है।
- अगर तेल लगाकर पकाएं तो काफी हद तक नॉनस्टिक की तरह हो जाता है यानी अमूमन इसमें खाना नहीं जलेगा और मुमकिन है कि सब्जियों का रंग काला भी नहीं होगा।
- यह हाई हीट भी आसानी से सह लेता है। यह टिकाऊ भी है।
- साबुन से बार-बार न धोएं, गर्म पानी और सॉफ्ट स्क्रबर से साफ करें।
- सीजनिंग यानी हल्का तेल लगाकर धीमी आंच पर गर्म करें। इससे नॉनस्टिक बर्तन की तरह बर्ताव करता है।
- जंग से बचाव के लिए धोने के बाद तुरंत सुखाएं और हल्की तेल की परत लगाएं।
- सूखी जगह रखें, अगर लंबे समय तक इस्तेमाल न करना हो तो कपड़े में लपेटकर रखें।
- जंग लगने की हमेशा आशंका, नियमित तेल/घी से सीजनिंग करनी पड़ती है ताकि जंग न लगे
- ज्यादा अम्लीय भोजन (खट्टे टमाटर आदि) पकाने से धातु खाने में ज्यादा घुल सकती है।
- बर्तन भारी होते हैं, इसलिए संभालना मुश्किल होता है।
नॉनस्टिक बर्तन
अगर कम आंच पर किसी चीज को पकाना हो तो नॉनस्टिक बेहतरीन है। अगर कोई इसमें तेल को ज्यादा गर्म कर उसमें चीजें फ्राई करने की कोशिश करे, बार-बार उसमें ऐल्युमिनियम या स्टील आदि धातु की चम्मच चलाई जाए तो यह मुमकिन है कि उस बर्तन की नॉनस्टिक कोटिंग न सिर्फ हट जाएगी बल्कि सब्जी, दाल आदि जो भी खाने की चीज़ बर्तन में मौजूद होगी, उसमें मिल भी जाए। अगर किसी को अपना वजन कम करना हो तो इससे बढ़िया बर्तन दूसरा हो नहीं सकता। इसमें तेल, घी आदि का उपयोग अगर न भी किया जाए और हल्की आंच पर पकाएं तो खाना तैयार हो जाता है। ध्यान रहे कि धातु की चम्मच की जगह लकड़ी की चम्मच का उपयोग हो। इससे नॉनस्टिक कोटिंग नहीं हटेगी। इनसे कैंसर होने की पुष्टि नहीं हुई है।
खासियत
- कम तेल में खाना बनाने की सुविधा
- साफ करने में आसान
- ज्यादा गर्मी (260 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) पर कोटिंग टूटकर हानिकारक धुआं निकल सकता है।
- खरोंच लगने पर टॉक्सिक कण भोजन में जा सकते हैं, लंबे समय तक इस्तेमाल सुरक्षित नहीं।
पीतल के बर्तन
पीतल में तांबा और जिंक का मिश्रण होता है। ये दोनों धातुएं शरीर के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं। इनमें पकाया गया भोजन शरीर में तांबे और जिंक का कुछ अंश पहुंचा सकता है जो इम्यूनिटी बढ़ाने और पाचन में मददगार होते हैं। पीतल के बर्तन में कलई या कसार यानी टिन की कोटिंग की जाती है। दही, इमली, नीबू, टमाटर जैसे खट्टे पदार्थों को पीतल में पकाना या रखना हानिकारक हो सकता है।
खासियत
- धार्मिक व पारंपरिक अहमियत और भोजन को स्वादिष्ट बनाता है।
- टिकाऊ और आकर्षक।
- बिना टिन की परत के इस्तेमाल करने पर जिंक और कॉपर का रिसाव हो सकता है।
- टिन की परत हटे नहीं, यह देखते रहना भी जरूरी है।
ऐल्युमिनियमजब इसकी खोज हुई थी तो यह सोने से भी ज्यादा महंगी धातु थी, लेकिन आज धातुओं में अमूमन सबसे सस्ती है। आज भी इसका उपयोग उन घरों में ज्यादा किया जाता है जिनकी स्थिति बर्तनों पर ज्यादा पैसे खर्च की नहीं होती या फिर जो इन पर ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते। BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) के नए निर्देश के अनुसार हल्के (लाइटवेट) ऐल्युमिनियम बर्तन को करीब 12 महीने में बदलने की सलाह दी गई है। वहीं, भारी गुणवत्ता वाले ऐल्युमिनियम बर्तन को करीब 24 महीने तक इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं, बर्तन पर उपयोग की जाने वाली ऐल्युमिनियम की ग्रेडिंग (करीब 99% शुद्धता आदि) साफ-साफ लेबल लगाकर बताई जानी चाहिए। एक्सपर्ट का मानना है कि अगर आप ऐल्युमिनियम को लेकर चिंतित हैं तो धीरे-धीरे किचन से कम कर सकते हैं, एकदम से सभी बर्तन हटाने की जरूरत नहीं है।
खासियत
- हल्के और सस्तेस, जल्दी गर्म हो जाते हैं, इसलिए ईंधन की बचत होती है।
- बाजार में आसानी से मिलते हैं, बड़े पैमाने पर घरों और ढाबों में इस्तेमाल।
- नरम धातु होने से जल्दी खरोंच पड़ती हैं।
- अम्लीय और नमकीन भोजन (जैसे टमाटर, इमली, दही) पकाने पर ऐल्युमिनियम घुलकर खाने में मिल सकती है।
- लंबे समय तक इस्तेमाल से न्यूरोलॉजिकल और किडनी की बीमारियों का खतरा हो सकता है (हालांकि कैंसर से सीधे संबंध का साइंटिफिक सबूत नहीं है)।
- BIS ने अब एक्सपायरी डेट (12-24 महीने) तय की है।
एनोडाइज्ड एल्युमिनियमसामान्य ऐल्युमिनियम की तुलना में यह ज्यादा बेहतर है। एनोडाइजिंग इलेक्ट्रोकेमिकल प्रोसेस से बनाई गई ऑक्साइड की परत है। इससे ऐल्युमिनियम की सतह पर ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की मोटी परत बन जाती है।
खासियत
- इससे ऐल्युमिनियम अमूमन खाने के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता।
- यह साधारण ऐल्युमिनियम से कहीं ज्यादा मजबूत होता है।
- इसकी उम्र लंबी होती है, एनोडाइजिंग से जंगरोधी हो जाता है।
- कभी-कभी डाई डालकर रंगीन एनोडाइजिंग भी की जाती है (जैसे काले, लाल या नीले पैन)
- साधारण ऐल्युमिनियम से ज्यादा टिकाऊ और सुरक्षित।
- अम्लीय पदार्थों के साथ भी अपेक्षाकृत सुरक्षित।
- सामान्य एल्युमिनियम से महंगे
- अगर कोटिंग खराब हो जाए तो वही समस्या आती है जो साधारण ऐल्युमिनियम में है
आयुर्वेद क्या कहता है बर्तनों के बारे में?
- सोने और चांदी के बर्तन सभी तरह के दोषनाशक व दृष्टिवर्धक यानी आंखों की रोशनी बढ़ाने वाले होते हैं।
- कांसे का बर्तन बुद्धिवर्धक, रुचिकर (मतलब) और रक्तपित्त यानी भोजन के पाचन को बढ़ाने वाला होता है।
- पीतल का बर्तन वातकारक, रुक्ष, कृमि व कफ नाशक होता है।
- लोहे व कांच के पात्र में भोजन करने से आंतरिक सूजन, पीलिया खत्म होता है।
- काष्ठ यानी लकड़ी के पात्र में भोजन करना विशेष रूप से रुचिप्रद और कफकारक होता है।
- मिट्टी के बर्तन में छोटे-छोटे सुराख होते हैं जो भाप और नमी को बहार निकलने देते हैं। भोजन में नमी और पोषक तत्व बने रहते हैं। वहीं, मिट्टी की प्रकृति क्षारीय होती है। जब इसमें खाना पकाया जाता है तो यह भोजन में मौजूद एसिड को बेअसर करने में भी मदद करता है। इनके अलावा मिट्टी के बर्तन में धीरे-धीरे खाना पकता है, जिससे भोजन पकाने के लिए ज्यादा तेल की जरूरत नहीं होती। हां, कफ थोड़ा बढ़ा सकते हैं।
- केले के पत्ते पर भोजन करना रुचिकर होता है। यह बलवर्धक, जठराग्नि दीपक होता है यानी शरीर के भोजन पचाने की शक्ति को बढ़ाने वाला होता है, साथ ही भोजन से अधिकतम ऊर्जा प्राप्त करने वाला भी होता है। यह विष, थकान, रक्तपित्त में फायदेमंद है लेकिन पीलिया में नुकसानदेह होता है।
- पलाश के पत्ते से बने पात्र में भोजन करने से वात, कफ, उदर (पेट) रोग का नाश होता है।
- आक (मदार) के पत्तों से बने पात्र में भोजन करना अति रुक्षता जनक (शरीर से पानी निकालने वाला), परम पित्तकारक (भोजन पाचन में सहयोग करने वाला) होता है।
- अरण्ड के पत्ते पर भोजन करना वातहर, कृमिनाशक (पेट के कीड़े को मारने वाला), पित्तकारक होता है।
एक्सपर्ट पैनल
- डॉ. सतवीर सिंह, डायरेक्टर (स्टडीज), नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर होटल मैनेजमेंट
- संजीव कपूर, जाने-माने शेफ
- डॉ. कौशल कालरा, हेड, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, सफदरजंग
- परमीत कौर, चीफ डाइटिशन, AIIMS
- नीलांजना सिंह, सीनियर डाइटिशन
- डॉ. आनन्द पांडेय, मुख्य चिकित्सक, गंगा आयुर्वेदिक चिकित्सालय
डिस्क्लेमर: इस लेख में किए गए दावे एक्सपर्ट से मिली जानकारी पर आधारित हैं। एनबीटी इसकी सत्यता और सटीकता जिम्मेदारी नहीं लेता है।
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केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए जर्मनी का करेंगे दौरा –