पूर्वी चंपारण: बिहार की प्रतिष्ठित गोविंदगंज विधानसभा सीट इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के कारण हाई-प्रोफाइल बन गई है। यह सीट, जिसे परंपरागत रूप से ब्राह्मणों का गढ़ माना जाता है (जहां 22% मतदाता इसी समुदाय से हैं और 18 में से 15 बार ब्राह्मण विधायक ही चुने गए हैं), में इस बार NDA की ओर से LJP (रामविलास) के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी, महागठबंधन से कांग्रेस के शशि भूषण राय उर्फ गप्पू राय, और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी से कृष्णकांत मिश्रा मैदान में हैं। हर दल जीत का दावा कर रहा है, लेकिन जनता के मन में गंडक नदी से होने वाला बाढ़-कटाव, पलायन और रोजगार जैसे ज्वलंत मुद्दे सबसे ऊपर हैं, जो हर चुनाव में जातीय समीकरणों के दबाव में दब जाते हैं।
कैंडिडेट के बाहरी होने का मुद्दा
कांग्रेस उम्मीदवार गप्पू राय ने LJP(R) के प्रत्याशी राजू तिवारी को 'बाहरी' बताकर इस चुनाव को 'स्थानीय बनाम बाहरी' और 'गोविंदगंज बनाम गोरखपुर' की लड़ाई करार दिया है। गप्पू राय आत्मविश्वास से लबरेज हैं और दावा कर रहे हैं कि वह एकतरफा जीत दर्ज करेंगे, और यह मुकाबला 'शांति बनाम अशांति' का है। दूसरी ओर, LJP(R) प्रत्याशी राजू तिवारी ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि गोविंदगंज की जनता उन्हें सम्मान दे रही है और वह सभी जातियों के समर्थन से जीतेंगे। उन्होंने 2015 के चुनाव का हवाला दिया, जब पूरे बिहार में महागठबंधन की लहर होने के बावजूद वह NDA उम्मीदवार के तौर पर रिकॉर्ड वोटों से जीते थे।
जन सुराज का हाल
इस बीच, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार कृष्णकांत मिश्रा एक अलग विकल्प पेश कर रहे हैं। उनका मानना है कि जनता न तो ठेकेदार को और न ही रंगदार को चाहती है, और इस बार वह दोनों पारंपरिक गठबंधनों से हटकर एक नया विकल्प चुनेगी। गोविंदगंज की राजनीति में, जहां आजादी के बाद 1952 से 1967 तक कांग्रेस का दबदबा रहा था, 2020 में यह सीट बीजेपी (सुनील मणि तिवारी) के खाते में गई थी। 2025 में यह सीट LJP(R) के कोटे में चली गई है। बीजेपी प्रवक्ता रवि त्रिपाठी ने भी इस जातीय समीकरण का हवाला देते हुए NDA उम्मीदवार की जीत का भरोसा जताया है।
जनता के बीच मतभेद
वर्तमान सियासी घमासान के बीच, गोविंदगंज की जनता बंटी हुई नज़र आ रही है। सब्जी मंडी में जहां कुछ लोग NDA और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर देख रहे हैं, वहीं कुछ गांवों में जनसुराज का पलड़ा भारी दिख रहा है। गंडक नदी के किनारे बसे लोगों का दर्द यह है कि हर साल नदी सब कुछ डुबो देती है और उन्हें पलायन करना पड़ता है। हालांकि, बीजेपी, कांग्रेस और जनसुराज के बीच फंसे इस त्रिकोणीय मुकाबले में, यह देखना दिलचस्प होगा कि बाढ़, कटाव और रोजगार जैसे वास्तविक मुद्दे ब्राह्मणों के जातीय दबदबे पर भारी पड़ते हैं या नहीं। फिलहाल, सीट पर वोटिंग का माहौल है। मतदाताओं में उत्साह देखा जा सकता है। सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
कैंडिडेट के बाहरी होने का मुद्दा
कांग्रेस उम्मीदवार गप्पू राय ने LJP(R) के प्रत्याशी राजू तिवारी को 'बाहरी' बताकर इस चुनाव को 'स्थानीय बनाम बाहरी' और 'गोविंदगंज बनाम गोरखपुर' की लड़ाई करार दिया है। गप्पू राय आत्मविश्वास से लबरेज हैं और दावा कर रहे हैं कि वह एकतरफा जीत दर्ज करेंगे, और यह मुकाबला 'शांति बनाम अशांति' का है। दूसरी ओर, LJP(R) प्रत्याशी राजू तिवारी ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि गोविंदगंज की जनता उन्हें सम्मान दे रही है और वह सभी जातियों के समर्थन से जीतेंगे। उन्होंने 2015 के चुनाव का हवाला दिया, जब पूरे बिहार में महागठबंधन की लहर होने के बावजूद वह NDA उम्मीदवार के तौर पर रिकॉर्ड वोटों से जीते थे।
जन सुराज का हाल
इस बीच, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार कृष्णकांत मिश्रा एक अलग विकल्प पेश कर रहे हैं। उनका मानना है कि जनता न तो ठेकेदार को और न ही रंगदार को चाहती है, और इस बार वह दोनों पारंपरिक गठबंधनों से हटकर एक नया विकल्प चुनेगी। गोविंदगंज की राजनीति में, जहां आजादी के बाद 1952 से 1967 तक कांग्रेस का दबदबा रहा था, 2020 में यह सीट बीजेपी (सुनील मणि तिवारी) के खाते में गई थी। 2025 में यह सीट LJP(R) के कोटे में चली गई है। बीजेपी प्रवक्ता रवि त्रिपाठी ने भी इस जातीय समीकरण का हवाला देते हुए NDA उम्मीदवार की जीत का भरोसा जताया है।
जनता के बीच मतभेद
वर्तमान सियासी घमासान के बीच, गोविंदगंज की जनता बंटी हुई नज़र आ रही है। सब्जी मंडी में जहां कुछ लोग NDA और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर देख रहे हैं, वहीं कुछ गांवों में जनसुराज का पलड़ा भारी दिख रहा है। गंडक नदी के किनारे बसे लोगों का दर्द यह है कि हर साल नदी सब कुछ डुबो देती है और उन्हें पलायन करना पड़ता है। हालांकि, बीजेपी, कांग्रेस और जनसुराज के बीच फंसे इस त्रिकोणीय मुकाबले में, यह देखना दिलचस्प होगा कि बाढ़, कटाव और रोजगार जैसे वास्तविक मुद्दे ब्राह्मणों के जातीय दबदबे पर भारी पड़ते हैं या नहीं। फिलहाल, सीट पर वोटिंग का माहौल है। मतदाताओं में उत्साह देखा जा सकता है। सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
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