नई दिल्ली: भारत में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों की संख्या पिछले 25 सालों में लगभग 269% बढ़ गई है। यह जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के बढ़ने का संकेत है। केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी ENVISTATS इंडिया रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2001-02 में मौतों की संख्या 834 थी, जो 2024-25 में बढ़कर 3,080 हो गई। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 से 2022 के बीच बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें हुईं। इसके अलावा, लू लगने, बाढ़ और चक्रवात से भी कई लोगों की जान गई।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2010 से 2024 के बीच कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लू वाले दिनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन आपदाओं को और बढ़ा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, कुछ सालों में मौतों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। 2013 में, केदारनाथ आपदा में 4,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इस वजह से उस साल मौतों का आंकड़ा 5,000 को पार कर गया था। पिछले एक दशक में भी यह आंकड़ा बढ़ता रहा। 2014-15 में 1,674 मौतें दर्ज की गईं।
बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें2017 से 2022 के बीच, बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें हुईं। हर साल हजारों लोगों की जान बिजली गिरने से गई। 2018 में 2,357 मौतें हुईं, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 2,887 तक पहुंच गया। लू लगने से भी बहुत से लोगों की जान गई। बाढ़ और चक्रवात से भी कुछ मौतें हुईं, लेकिन इनकी संख्या कम थी। भूकंप और महामारी से अपेक्षाकृत कम लोगों की जान गई।
लू ने कितने लोगों की ली जान? जुलाई में जारी हुई इस रिपोर्ट में गर्मी बढ़ने की चुनौती के बारे में भी बताया गया है। अप्रैल और जून के बीच लू वाले दिनों की संख्या में 2010 से 2024 के बीच तेजी से वृद्धि हुई है। असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले साल की तुलना में 2024 में लू वाले दिन ज्यादा रहे। पंजाब और उत्तराखंड में पिछले साल सबसे ज्यादा 22 दिन लू चली।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही टेंशनरिपोर्ट में ठंड के बारे में भी जानकारी दी गई है। असम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, झारखंड और उत्तर प्रदेश में 2023 से 2024 के बीच ठंड वाले दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है। जम्मू और कश्मीर में पिछले साल सबसे ज्यादा 12 दिन ठंड रही। विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े दिखाते हैं कि जलवायु परिवर्तन आपदाओं को और बढ़ा रहा है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट? पीयूष रौतेला उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं। आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ पीयूष रौतेला ने कहा, 'ये आंकड़े हमें याद दिलाते हैं कि जलवायु से जुड़े खतरे अब दूर की बात नहीं हैं, बल्कि आज की सच्चाई हैं। स्थानीय स्तर पर तैयारी को मजबूत करना, शुरुआती चेतावनी प्रणाली में निवेश करना और लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। इससे हम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।'
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2010 से 2024 के बीच कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लू वाले दिनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन आपदाओं को और बढ़ा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, कुछ सालों में मौतों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। 2013 में, केदारनाथ आपदा में 4,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इस वजह से उस साल मौतों का आंकड़ा 5,000 को पार कर गया था। पिछले एक दशक में भी यह आंकड़ा बढ़ता रहा। 2014-15 में 1,674 मौतें दर्ज की गईं।
बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें2017 से 2022 के बीच, बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें हुईं। हर साल हजारों लोगों की जान बिजली गिरने से गई। 2018 में 2,357 मौतें हुईं, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 2,887 तक पहुंच गया। लू लगने से भी बहुत से लोगों की जान गई। बाढ़ और चक्रवात से भी कुछ मौतें हुईं, लेकिन इनकी संख्या कम थी। भूकंप और महामारी से अपेक्षाकृत कम लोगों की जान गई।
लू ने कितने लोगों की ली जान? जुलाई में जारी हुई इस रिपोर्ट में गर्मी बढ़ने की चुनौती के बारे में भी बताया गया है। अप्रैल और जून के बीच लू वाले दिनों की संख्या में 2010 से 2024 के बीच तेजी से वृद्धि हुई है। असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले साल की तुलना में 2024 में लू वाले दिन ज्यादा रहे। पंजाब और उत्तराखंड में पिछले साल सबसे ज्यादा 22 दिन लू चली।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही टेंशनरिपोर्ट में ठंड के बारे में भी जानकारी दी गई है। असम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, झारखंड और उत्तर प्रदेश में 2023 से 2024 के बीच ठंड वाले दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है। जम्मू और कश्मीर में पिछले साल सबसे ज्यादा 12 दिन ठंड रही। विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े दिखाते हैं कि जलवायु परिवर्तन आपदाओं को और बढ़ा रहा है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट? पीयूष रौतेला उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं। आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ पीयूष रौतेला ने कहा, 'ये आंकड़े हमें याद दिलाते हैं कि जलवायु से जुड़े खतरे अब दूर की बात नहीं हैं, बल्कि आज की सच्चाई हैं। स्थानीय स्तर पर तैयारी को मजबूत करना, शुरुआती चेतावनी प्रणाली में निवेश करना और लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। इससे हम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।'
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