New Delhi, 13 अगस्त . दार्शनिक और लेखक आचार्य प्रशांत ने Supreme court के हालिया आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आवारा कुत्तों की आबादी नियंत्रण के लिए ‘मानवीय और समग्र’ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता बताई है. कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह के भीतर शेल्टरों में भेजने का निर्देश दिया है.
पेटा के मॉस्ट एफ्लुएंट वीगन अवार्ड से सम्मानित आचार्य प्रशांत ने कहा, “मैं समझता हूं कि कोर्ट किस समस्या को संबोधित कर रहा है, लेकिन समाधान से सहमत नहीं हूं.”
उन्होंने बताया कि भारत में 6 से 7 करोड़ आवारा कुत्ते हैं. अगर उन्हें एक अलग ‘देश’ माना जाए, तो यह दुनिया का 20वां सबसे अधिक आबादी वाला देश होगा.
उन्होंने कहा कि अकेले दिल्ली-एनसीआर में करीब 10 लाख आवारा कुत्ते हैं. भारत में हर साल लगभग 20,000 लोग रेबीज से मरते हैं और करीब 30 लाख लोग कुत्तों के काटने से प्रभावित होते हैं.
हालांकि, उन्होंने कोर्ट की भावना का सम्मान किया, लेकिन कोर्ट द्वारा सुझाए गए तरीके से असहमति जताई है. उनका कहना था कि आठ सप्ताह में सभी कुत्तों को शेल्टर में भेजना अव्यावहारिक है. देशभर में क्षमता जरूरत से बहुत कम है और खर्च 15,000 करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है. उन्होंने चेताया कि भीड़भाड़ वाले शेल्टर बीमारी और उपेक्षा का केंद्र बन सकते हैं.
आचार्य प्रशांत ने कहा, “वैश्विक अनुभव बताता है कि बड़े पैमाने पर हटाने से ‘वैक्यूम इफेक्ट’ पैदा होता है, जिसमें नए, नसबंदी न किए गए कुत्ते उस जगह आ जाते हैं. मानवीय ढांचे के अभाव में शेल्टर ‘भीड़भाड़ और पीड़ा के केंद्र’ बन सकते हैं.”
उन्होंने आगे कहा कि कुत्तों को केवल पिंजरे नहीं, बल्कि खुली जगह, व्यायाम और घूमने-फिरने की आजादी भी चाहिए.
उन्होंने बताया कि इस समस्या के बेहतर समाधान पहले से मौजूद हैं. कई पश्चिमी देशों ने ‘ट्रैप-न्युटर-रिटर्न’ (टीएनआर), कुत्तों को पकड़ना, नसबंदी, टीकाकरण और फिर अपने क्षेत्र में छोड़ना, के जरिए समस्या का समाधान किया. पालतू पंजीकरण, माइक्रोचिपिंग, सख्त परित्याग-विरोधी कानून, बड़े पैमाने पर रेबीज टीकाकरण और जिम्मेदार फीडिंग नीतियों के साथ, टीएनआर धीरे-धीरे कुत्तों की आबादी और रेबीज जैसी बीमारी के खतरे को कम करता है.
आचार्य प्रशांत ने हर जिले में 70 प्रतिशत नसबंदी कवरेज हासिल करने की सिफारिश की, जिससे रेबीज का खतरा तेजी से घटे. इसके साथ उन्होंने मानवीय शेल्टर सुधार और समुदाय-स्तरीय शिक्षा पर जोर दिया, जिसमें फीडिंग को नसबंदी से जोड़ा जा सके.
आदेश से उपजी सक्रियता पर उन्होंने कहा, “दूसरी प्रजाति के लिए बोलना सराहनीय है, लेकिन कुत्ते संकटग्रस्त नहीं हैं, इनकी संख्या करोड़ों में है. भारत में 1,000 से अधिक प्रजातियां संकटग्रस्त या गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन सैकड़ों से हजारों प्रजातियां मानवीय गतिविधियों से लुप्त हो रही हैं.”
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और औद्योगिक पशुपालन सामूहिक विलुप्ति के प्रमुख कारण हैं. वर्तमान में दुनिया के पशु बायोमास का 96 प्रतिशत केवल 8-10 पालतू और घरेलू प्रजातियों- जैसे पालतू जानवर और मवेशी, से बना है, जबकि लाखों वन्य प्रजातियां शेष 4 प्रतिशत में सिमट गई हैं.
उन्होंने आगे कहा, “यदि हम सच में जानवरों से प्रेम करते हैं, तो हमारी पहली लड़ाई जलवायु परिवर्तन के खिलाफ और जंगलों, स्वच्छ नदियों व प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए होनी चाहिए. किसी प्रजाति को विलुप्त करने के लिए उसे सीधे मारना जरूरी नहीं, उसका आवास नष्ट करना ही पर्याप्त है. हमें उन लाखों प्रजातियों के बारे में सोचना होगा, जिन्हें हम जल्द ही शायद कभी न देख पाएं.”
आखिर में उन्होंने कहा, “आवारा कुत्तों का संकट ‘मानवीय और समग्र’ दृष्टिकोण से सुलझाया जाना चाहिए, उनके प्रति करुणा का भाव रखते हुए, जो लंबे समय से मनुष्य के साथी रहे हैं. लेकिन, एक ही प्रजाति पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित कर उस जलवायु संकट की अनदेखी नहीं की जा सकती, जो लाखों उपेक्षित प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है.”
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एफएम/
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