नई दिल्ली, 15 मई . भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बीच पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत ने खुद को अलग और स्वतंत्र देश घोषित कर दिया है. वहां के नेताओं का कहना है कि वे अब पाकिस्तान के साथ नहीं रह सकते हैं और अब बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र है. इसके साथ ही, बलूचों ने भारत और संयुक्त राष्ट्र से मदद मांगी है कि बलूचिस्तान को एक अलग देश का दर्जा दिया जाए.
जिस तरह से बलूचों द्वारा आए दिन पाकिस्तानी सेना और सैन्य इकाइयों को निशाना बनाकर पाकिस्तान की सरकार को चेतावनी दी जा रही है, उससे साफ है कि अगल राष्ट्र की मांग रुकने वाली नहीं है. अगर बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश हो जाता है, तो देश के हिंदुओं के लिए दो बड़े और ऐतिहासिक मंदिरों के द्वार खुल जाएंगे: पहला हिंगलाज माता मंदिर और दूसरा कटासराज मंदिर.
जिस तरह से भारतीय सिख समुदाय के लिए करतारपुर कॉरिडोर बनाया गया और गुरुद्वारा दरबार साहिब तक पहुंच आसान हुई, ठीक उसी तरह से हिंगलाज माता मंदिर और कटासराज मंदिर के द्वार भारतीय हिंदू के लिए खुल सकते हैं.
बलूचिस्तान के अगल देश बनने से वहां स्थित हिंगलाज माता मंदिर तक भारतीयों की सीधी पहुंच होगी, क्योंकि फिलहाल भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण यहां तक हिंदुओं की पहुंच सीमित है. यह मंदिर भारत के हिंदुओं के लिए खास महत्व रखता है, जहां भारतीयों की पहुंच बहुत कम है.
हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासबेला जिले में स्थित एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र मंदिर है. यह मंदिर हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसे हिंगलाज शक्तिपीठ भी कहा जाता है.
मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े किए, और जहां-जहां ये गिरे वहां शक्तिपीठ बने. हिंगलाज वह स्थान है जहां माता सती का मस्तक गिरा था.
यह मंदिर हिंगोल नदी के किनारे स्थित है और चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. यहां की देवी को ‘हिंगलाज देवी’ या ‘नानी मां’ के नाम से भी पूजा जाता है, खासकर सिंधी और बलूच हिंदू समुदायों में इसका विशेष महत्व है.
इस स्थान की विशेषता यह भी है कि यहां मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भी आस्था रखते हैं और देवी को ‘नानी पीर’ के रूप में मानते हैं. हिंगलाज यात्रा एक कठिन, लेकिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण यात्रा मानी जाती है. इसे ‘हिंगलाज तीर्थयात्रा’ भी कहा जाता है.
इसके साथ ही पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल में स्थित कटासराज शिव मंदिर भी काफी ऐतिहासिक और पुराना है. यहां भारत-पाकिस्तान तनातनी की वजह से हिंदुओं की पहुंच न के बराबर है, जो बलूचिस्तान के बनने से यहां तक हिंदुओं की पहुंच हो जाएगी.
कटासराज शिव मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर एक मंदिर-समूह का हिस्सा है, जिसमें कई अन्य छोटे मंदिर भी शामिल हैं. कटासराज मंदिर की विशेषता यहां स्थित पवित्र सरोवर है, जिसे कटास कुंड कहा जाता है.
मान्यता है कि यह सरोवर भगवान शिव के आंसुओं से बना है, जब उन्होंने अपनी पत्नी सती के वियोग में विलाप किया था.
यह मंदिर प्राचीन काल में हिंदू धर्म के शिक्षा और दर्शन के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में जाना जाता था. कहा जाता है कि पांडव अपने वनवास के दौरान यहां कुछ समय के लिए रुके थे.
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि महान दार्शनिक और विद्वान आदि शंकराचार्य ने यहां दर्शन का प्रचार-प्रसार किया था.
कटासराज मंदिर परिसर का वास्तुशिल्प हिंदू-बौद्ध शैली का अद्भुत उदाहरण है. हालांकि, विभाजन के बाद इस मंदिर में पूजा कम हो गई. हालांकि, यह आज भी पाकिस्तान में हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है.
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डीएससी/एकेजे
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