अहोई अष्टमी 2025
अहोई अष्टमी व्रत: कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए माताओं द्वारा रखा जाता है। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत करती हैं और शाम को अहोई माता की पूजा करती हैं। इसके बाद वे चंद्रमा या तारे को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं। यह व्रत करवा चौथ से अधिक कठिन माना जाता है क्योंकि चंद्रमा देर से निकलता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने इस व्रत का विधान किया था। कहा जाता है कि इस दिन अहोई माता की आराधना करने से संतान की रक्षा होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। अहोई माता को सप्तभूजा देवी के रूप में भी पूजा जाता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, आज चंद्रमा निकलने का समय रात 11:20 बजे है। दिल्ली में तारे दिखने का समय शाम 6:17 बजे, नोएडा में 6:20 बजे और गुरुग्राम में भी 6:20 बजे है।
अहोई माता की आरती अहोई माता की आरती
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशिदिन सेवत हर विष्णु विधाता॥
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
ब्रह्माणी रूद्राणी कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।।
मैया जय अहोई माता, जय जय होई माता। माता रूप निरंजन सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल आता।
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
तू ही है पाताल वसंती, तू ही शुभदाता।
कर्मप्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।।
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
जिस घर थारो बासो वाही में गुण आता।
कर न सके सोई करले मन नहीं घबराता।।
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव तुम बिन नहीं जाता।।
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
शुभ गुण सुन्दर मुक्ता क्षीरनिधि जाता।
रत्न चतुर्दश तोकूं कोई नहीं पाता।।
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई भी गाता।
उर उमंग अतिं उपजे पाप उतर जाता।।
मैया जय अहोई माता, जय जय अहोई माता।
अहोई अष्टमी की कथा अहोई अष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। साहूकार ने अपनी सभी बेटियों का विवाह कर दिया था। एक बार दिवाली से पहले उसकी बेटी अपने मायके आई थी। उस समय उसकी भाभियां घर लीपने के लिए जंगल में मिट्टी लेने गईं, और वह भी उनके साथ चली गई। जहां साहूकार की बेटी मिट्टी की कटाई कर रही थी, वहां स्याहू (साही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी।
इस दौरान, साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट अनजाने में स्याहू के बेटे को लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद क्रोधित स्याहू ने साहूकार की बेटी की कोख बांधने की बात कही। इस डर से साहूकार की बेटी रोने लगी और अपनी भाभियों से विनती की, लेकिन सभी ने मना कर दिया। हालांकि, उसकी छोटी भाभी ने उसकी बात मान ली। इसके बाद छोटी भाभी की संतान पैदा होने के सात दिन बाद मर जाती थी। यह सब स्याहू के श्राप के कारण हो रहा था।
इस तरह उसकी सात संतानों की मृत्यु हो गई। अंततः उसने पंडित जी से उपाय पूछा, जिन्होंने उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। फिर उसने मन लगाकर सुरही गाय की सेवा की। छोटी बहू की सेवा से खुश होकर एक दिन सुरही गाय उसे स्याहू के पास ले गई। इसके बाद छोटी बहू ने स्याहू की सेवा की। स्याहू उसकी सेवा से प्रसन्न हुई और उसे सात पुत्र और बहू होने का आशीर्वाद दिया। तभी से कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर स्याहू का चित्र बनाकर उनकी पूजा की जाती है।
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