भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए आज यानी 9 सितंबर को वोटिंग हो रही है.
इसके नतीजे भी आज ही आ जाएँगे.
भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव पार्टी के चुनाव चिह्न पर नहीं लड़ा जाता है.
यही वजह है कि इन चुनावों के लिए कोई भी पार्टी व्हिप जारी नहीं करती.
यानी इन चुनावों में वोट देने वाले सांसद किसी भी उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं.
इन चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, जो बीजेपी के सदस्य रहे हैं.
राधाकृष्णन तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया है.
बी सुदर्शन रेड्डी का संबंध आंध्र प्रदेश से है. इस तरह इस चुनाव में दोनों प्रमुख उम्मीदवार दक्षिण भारत से हैं.
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उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए पिछले चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने बड़ी जीत हासिल की थी.
लेकिन जुलाई में धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
अगस्त 2022 में हुए चुनावों में कुल 725 वोटों में से जगदीप धनखड़ को 528 वोट मिले थे. यानी वे क़रीब 73% मतों के साथ विजयी हुए थे.
इस बार के चुनावों में क्रॉस वोटिंग की अटकलें लगाई जा रही हैं.
मौजूदा समीकरण में एनडीए की जीत स्पष्ट दिख रही है.
हालाँकि जीत के अंतर में आई किसी भी कमी को विपक्ष, सत्ता पक्ष की ताक़त कमज़ोर होने के रूप में पेश कर सकती है.
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "जगदीप धनखड़ ने इस्तीफ़ा क्यों दिया, इस पर अब भी अटकलें जारी हैं. सरकार विदेश नीति के कुछ मुद्दों पर भी मुश्किलों में है और इसलिए कहा जा रहा है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में क्रॉस वोटिंग हो सकती है."
"क्रॉस वोटिंग की इन अटकलों को हाल ही में हुए कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनावों ने और बढ़ा दिया है. वो चुनाव काफ़ी छोटा था, लेकिन उसमें बीजेपी हाई कमान का उम्मीदवार हार गया. इसलिए ये भी अटकलें लग रही हैं कि बीजेपी के लोग ही क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं. अब मोदी जी को दिखाना है कि उनका कंट्रोल पहले की तरह बना हुआ है."
दिल्ली में संसद भवन के पास मौजूद कॉन्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया के चुनाव में बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी ने बीजेपी के पूर्व सांसद संजीव बालियान को हरा दिया था.
यहाँ बीजेपी के दो नेता आमने-सामने थे.
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उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "भले ही इस पद पर कोई प्रत्यक्ष काम न दिखे, लेकिन इसकी अपनी संवैधानिक भूमिका होती है. प्रोटोकॉल में उपराष्ट्रपति दूसरे नंबर पर आते हैं. देश-विदेश में उनका नाम होता है और इस लिहाज से यह पद अहम है."
प्रोटोकॉल के हिसाब से राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति का स्थान होता है. यानी किसी भी वजह से राष्ट्रपति की ग़ैर मौजूदगी में उपराष्ट्रपति ही उनकी भूमिका निभाते हैं.
रशीद किदवई मानते हैं कि जिन परिस्थितियों में यह चुनाव हो रहा है, उसने इसे और अहम बना दिया है.
उन्होंने कहा, "बीजेपी या मोदी जी चाहेंगे कि वे इन चुनावों को बड़े अंतर से जीतें, ताकि विपक्ष को अपनी ताक़त दिखा सकें. हालाँकि इस चुनाव का कोई ख़ास महत्व नहीं होता, बस हार-जीत पर कुछ दिन चर्चा होती है. लेकिन यह अपनी ताक़त दिखाने के लिए अहम है."
इस बार उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 782 वोट हैं.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी के मुताबिक़, एनडीए के पास चुनाव में जीत के लिए ज़रूरी 391 वोट से 31 वोट ज़्यादा हैं. वहीं इंडिया ब्लॉक के पास 312 वोट हैं.
दक्षिणपंथी राजनीतिक विश्लेषक शुभ्र कमल दत्ता कहते हैं, "कोई भी सत्ताधारी पार्टी चाहती है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या लोकसभा अध्यक्ष जैसे सारे अहम पदों पर उसकी पसंद के लोग बैठें. क्या कांग्रेस ऐसा नहीं चाहती थी? विपक्ष का काम था इस मुद्दे पर सहमति बनाना, लेकिन वह अपनी मनमानी करने में लगा है."
उनका मानना है कि अगर कांग्रेस सत्ता पक्ष के वोट काटने की कोशिश कर रही है, तो यह संभव नहीं है, बल्कि विपक्ष के ही कुछ वोट बीजेपी के उम्मीदवार के समर्थन में जा सकते हैं.
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मौजूदा राजनीतिक हालात देखें, तो पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों के बाद एनडीए ने जिस समीकरण के साथ केंद्र में अपनी सरकार बनाई थी, उसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है.
हालाँकि इस बीच कुछ मुद्दों को लेकर एनडीए के कुछ साझेदारों का रुख़ सुर्ख़ियों में रहा है.
इनमें टीडीपी का नाम सबसे प्रमुख है. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी आंध्र प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ है और विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ताल्लुक भी इसी राज्य से है.
क्या इसका उपराष्ट्रपति चुनाव पर कोई असर पड़ सकता है?
इस सवाल पर रशीद किदवई कहते हैं, "राजनीति भावनाओं से नहीं, मक़सद से चलती है. चंद्रबाबू नायडू ने भाषा, जीएसटी, वक्फ़ जैसे तमाम मुद्दों पर सरकार का साथ दिया है और ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वे सरकार के साथ खड़े न रहें."
उन्होंने कहा, "मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं जैसे मायावती की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई थी. फ़िलहाल सरकार की स्थिरता पर कोई ख़तरा नहीं है. यह तभी हो सकता है जब सत्ता पक्ष के 100 वोट विपक्ष की तरफ़ आ जाएँ, जो होता नहीं दिखता. इसलिए मुझे नहीं लगता कि नायडू कहीं और जाएँगे."
इस तरह उपराष्ट्रपति पद का यह चुनाव विपक्ष के लिए भी काफ़ी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
उनके सामने उन दलों को अपने साथ लाने की चुनौती होगी, जो सत्ता पक्ष या विपक्ष, किसी का हिस्सा नहीं हैं.
इस बीच ओडिशा के बीजू जनता दल ने फ़ैसला किया है कि वह इन चुनावों से दूर रहेगा और किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं करेगा.
वहीं कई अन्य राजनीतिक दल ऐसे हैं, जो चुनावी नतीजों से ज़्यादा नतीजों के अंतर पर असर डाल सकते हैं, और राजनीति में इस बात का भी अपना महत्व होता है.
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