बीते शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के बरेली में 'आई लव मोहम्मद' अभियान के समर्थन में निकाली गई रैली के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई थी.
इस मामले में 50 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
गिरफ़्तार किए गए लोगों में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष और चर्चित इस्लामी विद्वान अहमद रज़ा ख़ान के वंशज मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान भी शामिल हैं.
बरेली पुलिस ने 65 साल के तौक़ीर रज़ा ख़ान को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प का 'मास्टरमाइंड' बताया है.
वहीं, तौक़ीर रज़ा ख़ान ने एक बयान में कहा है कि जब बरेली में घटनाक्रम हो रहा था, तब वो अपने घर में नज़रबंद थे.
कानपुर में 'आई लव मोहम्मद' का बैनर लगाने को लेकर दर्ज हुई एफ़आईआर के बाद देश के कई शहरों में मुसलमानों ने 'आई लव मोहम्मद' अभियान चलाया और कई शहरों में प्रदर्शन हुए.
इसी सिलसिले में बरेली में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ने शुक्रवार यानी 26 सितंबर को लोगों से बरेली के इस्लामिया ग्राउंड में इकट्ठा होने की अपील की.
बरेली पुलिस का कहना है कि भीड़ को संयमित तरीक़े से समझाने का प्रयास किया गया था, लेकिन लोगों ने बैरिकेडिंग तोड़कर इस्लामिया ग्राउंड पहुँचने का प्रयास किया.
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं और पुलिस ने भीड़ पर बल प्रयोग किया.
बरेली पुलिस ने कहा था कि तौक़ीर रज़ा ख़ान और इत्तेहाद ए मिल्लत के अन्य अधिकारियों ने बिना अनुमति के लोगों को इस्लामिया ग्राउंड में जुटने की अपील की थी.
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बरेली पुलिस ने शुक्रवार को हुई झड़पों और हिंसा से जुड़े मामलों में जो 10 एफ़आईआर दर्ज की हैं, उनमें से सात में तौक़ीर रज़ा ख़ान को नामजद किया गया है.
उन्हें गिरफ़्तार करके 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. हालाँकि ये पहली बार नहीं है, जब तौक़ीर रज़ा ख़ान जेल गए हैं.
इससे पहले साल 2010 में यूपी में बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में भी उन्हें सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोप में जेल भेजा गया था.
दरअसल साल 2010 में भी बरेली में जुलूस-ए-मोहम्मदी (बारावफ़ात) पर निकलने वाले जुलूस के दौरान हिंसा हुई थी.
तब यूपी पुलिस ने मौलाना तौक़ीर रज़ा को गिरफ़्तार करके जेल भेजा था.
तब बरेली शहर में कर्फ़्यू लगा था और माहौल तनावपूर्ण था. पुलिस ने इस मामले में बाद में तौक़ीर रज़ा के ख़िलाफ़ जाँच बंद कर दी थी.
हालाँकि, तौक़ीर रज़ा ख़ान पर ये पहला मुक़दमा नहीं था. उन पर पहला मुक़दमा बरेली कोतवाली में साल 1982 में दंगा भड़काने के आरोप में दर्ज हुआ.
बीते शुक्रवार को हुई हिंसा के संबंध में सात एफ़आईआर में नामजद होने से पहले उनके ख़िलाफ़ 10 मुक़दमे थे.
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साल 2023 में तौक़ीर रज़ा ख़ान ने हिंदू राष्ट्र की मांग करने वाले पर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज करने की अपील की थी.
उनके इस बयान के संबंध में मुरादाबाद पुलिस ने उन पर समुदायों के बीच शत्रुता बढ़ाने के आरोप में मुक़दमा दर्ज किया गया था.
हालाँकि इस मामले में उनकी गिरफ़्तारी नहीं हुई थी.
तौक़ीर रज़ा ख़ान भारत में मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बोलते रहे हैं और अपने बयानों से सुर्ख़ियों में भी रहे हैं.
साल 2015 में तौक़ीर रज़ा ख़ान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर देश भर में गोहत्या पर रोक लगाने की अपील की थी.
साल 2023 में हरियाणा में जब कथित गौरक्षकों ने मुसलमान युवकों की हत्या की, तो उन्होंने इसके विरोध में तिरंगा यात्रा निकालने का आह्वान किया, हालाँकि पुलिस ने उन्हें घर में नज़रबंद रखा.
तौक़ीर रज़ा ख़ान भारत में मुसलमानों की स्थिति को लेकर चिंता ज़ाहिर करते रहे हैं और इससे जुड़े कई बयान उन्होंने दिए हैं.
साल 2024 में जब उन्हें दिल्ली के रामलीला मैदान में कार्यक्रम करने से रोका गया, तब एक बयान में उन्होंने कहा था, "मुसलमानों के अंदर ही अंदर लावा भर रहा है, उसे किसी सूरत में निकालने की कोशिश है, वरना वो ज्वालामुखी बन जाएगा."
वहीं दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंसा के बाद हुई पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए तौक़ीर रज़ा ख़ान ने कहा था कि पुलिस मुसलमानों पर एकतरफ़ा कार्रवाई कर रही है.
उन्होंने कहा था, "मुसलमान अगर सड़क पर उतर आया तो उसे कोई नहीं रोक पाएगा."
मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान का सियासी प्रभाव भले ही सीमित हो, लेकिन बहुत से मुसलमानों पर उनका प्रभाव माना जाता है.
मौलाना असनाद रज़ा कहते हैं, "भले ही मुसलमान तौक़ीर रज़ा ख़ान से सियासी दूरी रखते हों, उनके कहने पर वोट ना देते हैं, लेकिन वो उनसे एक जज़्बाती जुड़ाव तो महसूस करते ही हैं."
वे कहते हैं, "हर मुसलमान पैगंबर मोहम्मद से दिल से मोहब्बत करता है, बहुत से मुसलमानों के लिए ये सिर्फ़ धार्मिक ही नहीं बल्कि जज़्बाती मामला है. तौक़ीर रज़ा ख़ान पैगंबर के सम्मान के लिए आवाज़ उठाते हैं, एक आम मुसलमान इससे जुड़ाव महसूस करता है."
वहीं अनवर अहमद कहते हैं, "मौलाना तौक़ीर रज़ा भले ही धार्मिक भूमिका में ना रहे हों. उनका किरदार भले ही सियासी ज़्यादा हो, लेकिन बहुत से मुसलमानों के लिए वो बरेली की दरगाह से जुड़ा चेहरा हैं. ऐसे में, जब वो आह्वान करते हैं तो लोग उनकी सुनते हैं."
अनवर अहमद कहते हैं कि ऐसा लगता है कि इस बार मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान स्थिति को भाँप नहीं पाए. वे प्रशासन की प्रतिक्रिया का अंदाज़ा नहीं लगा पाए.
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तौक़ीर रज़ा ख़ान प्रमुख धार्मिक परिवार से जुड़े हैं और सियासत में भी सक्रिय हैं. उनके पिता रेहान रज़ा ख़ान कांग्रेस के दौर में एमएलसी (विधान परिषद सदस्य) भी रहे.
हालाँकि, आला हज़रत के ख़ानदान के बाक़ी लोग राजनीति में बहुत अधिक सक्रिय नहीं है.
मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान ने साल 2001 में इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल यानी आईईएमसी बनाई.
इस क्षेत्रीय राजनीतिक दल ने स्थानीय स्तर पर चुनाव लड़े और विधानसभा चुनाव में भी यह मैदान में उतरी.
आईईएमसी (जिसकी मान्यता को पिछले सप्ताह ही ख़त्म किया गया है) ने साल 2001 में अपने पहले नगर निगम चुनाव में कई सीटें जीतीं.
आईईएमसी ने 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में कई उम्मीदवार मैदान में उतारे.
बरेली की भोजीपुरा सीट से जीतने वाले पार्टी के एक मात्र विधायक बाद में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे.
आईईएमसी बरेली के बाहर कोई ख़ास सियासी प्रभाव नहीं बना पाई, लेकिन बरेली में इस दल का असर रहा.
तौक़ीर रज़ा ख़ान कभी भी किसी प्रमुख राजनीतिक दल में शामिल भले ना हुए हैं, लेकिन कांग्रेस से लेकर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का समर्थन ज़रूर करते रहे हैं.
एक समय बहुजन समाज पार्टी के क़रीब रहे तौक़ीर रज़ा ख़ान ने साल 2007 में कांग्रेस का समर्थन किया. आगे चलकर वो समाजवादी पार्टी के साथ हो गए.
यूपी में जब 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार बनीं, तो उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा देते हुए उत्तर प्रदेश हैंडलूम कॉरपोरेशन का चेयरमैन बना दिया.
हालाँकि सितंबर 2014 में उन्होंने अखिलेश सरकार पर मुज़फ़्फ़रनगर में हुए सांप्रदायिक दंगे के दौरान मुसलमानों की सुरक्षा में नाकाम रहने का आरोप लगाते हुए ये पद छोड़ दिया.
अहमद रज़ा ख़ान के वंशजतौक़ीर रज़ा ख़ान चर्चित इस्लामी विद्वानों के परिवार से आते हैं और उनके परिवार का प्रभाव सिर्फ़ बरेली या आसपास के ज़िलों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की सीमा के पार उन देशों में भी है, जहाँ सुन्नी-सूफ़ी इस्लाम का प्रभाव है.
हालाँकि, तौक़ीर रज़ा ख़ान का सियासी दायरा बरेली और आसपास के इलाक़ों तक ही सीमित है.
तौक़ीर रज़ा ख़ान की सबसे बड़ी पहचान यही है कि वह 19वीं सदी के प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान अहमद रज़ा ख़ान की छठी पीढ़ी से हैं.
बरेली में आला हज़रत के नाम से चर्चित अहमद रज़ा ख़ान की दरगाह है, जिससे दुनिया में करोड़ों लोग जुड़े हैं.
तौक़ीर रज़ा ख़ान के बड़े भाई मौलाना शुब्हान रज़ा ख़ान इस दरगाह के गद्दीनशीं यानी प्रमुख ख़ादिम हैं.
अहमद रज़ा ख़ान सुन्नी-सूफ़ी इस्लाम के प्रमुख सुधारवादी धर्मगुरुओं में से एक थे.
अहमद रज़ा ख़ान ने कई धार्मिक किताबें भी लिखीं और इस्लाम की व्याख्याएँ कीं.
अहमद रज़ा ख़ान ने इस्लाम में जो सुधारवादी आंदोलन शुरू किया, उसे बरेलवी आंदोलन कहा गया है.
यूँ तो बरेलवी इस्लाम में कोई फिरक़ा नहीं है, लेकिन बहुत से मुसलमान अपनी धार्मिक पहचान को बरेली से जोड़ते हैं और ख़ुद को 'बरेलवी' बताते हैं.
अहमद रज़ा ख़ान के बरेलवी आंदोलन ने मुसलमानों को पारंपरिक सुन्नी इस्लाम और सूफ़ीवाद की तरफ़ लौटने के लिए प्रेरित किया. पैगंबर मोहम्मद से भक्तिपूर्ण प्रेम इसका केंद्र है.
यही वजह है कि भारत में जहाँ-जहाँ बरेलवी मुसलमानों का प्रभाव है, वहाँ-वहाँ बारावफ़ात या ईद-उल-मिलादुल नबी के मौक़े पर जुलूस निकलते हैं.
पैगंबर मोहम्मद के लिए मोहब्बत को ज़ाहिर करने के लिए ही मुसलमानों ने 'आई लव मोहम्मद' के बैनर पोस्टर लगाए.
बरेलवी इस्लाम से जुड़े एक स्थानीय धर्मगुरु मौलाना असनाद रज़ा कहते हैं, "तौक़ीर रज़ा ख़ान आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ान के वंशज हैं और इसलिए ही बहुत से मुसलमान उनकी इज़्ज़त करते हैं और उनकी बात भी सुनते हैं."
हालाँकि, बरेली की आला हज़रत दरग़ाह धर्म का केंद्र रही है ना कि राजनीति का.
मौलाना असनाद रज़ा कहते हैं, "सुन्नी मुसमलान जो ख़ुद को बरेलवी भी कहते हैं. उनके लिए बरेली की दरगाह बेहद अहम है. बरेली की दरगाह धर्म का केंद्र है ना कि राजनीति का. यही वजह है कि इसका धार्मिक प्रभाव तो है लेकिन राजनीतिक नहीं."
वहीं बरेली शहर के ही एक स्थानीय मुसलमान अनवर अली कहते हैं, "बरेली या आसपास के मुसलमान तौक़ीर रज़ा ख़ान की आवाज़ इसलिए सुनते हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं वो आला हज़रत के ख़ानदान से हैं और दरगाह से जुड़े हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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