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क्या राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा, महागठबंधन के लिए सत्ता की चाबी साबित होगी?

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Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा का सोमवार को समापन हो गया.

बिहार में बीते 17 अगस्त से चल रही वोटर अधिकार यात्रा का सोमवार को पटना में समापन हो गया.

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने पटना के डाकबंगला चौराहे पर बीजेपी को चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा, "महादेवपुरा के एटम बम के बाद बिहार में हाइड्रोजन बम आने वाला है."

इससे ये तो साफ़ हो गया कि कांग्रेस एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) के मुद्दे को यहीं छोड़ने वाली नहीं है बल्कि अभी इस मुद्दे के इर्द गिर्द और भी कार्यक्रम भविष्य में बुने जाएंगे.

लेकिन फिलहाल वोटर अधिकार यात्रा के ख़त्म होने के बाद जो सबसे बड़ा सवाल बिहार की राजनीति में तैर रहा है, वो ये कि इस यात्रा का महागठबंधन के लिए हासिल क्या है?

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बीते विधानसभा चुनाव में कमज़ोर कड़ी साबित हुई कांग्रेस क्या अपने सांगठनिक ढांचे को मजबूत कर पाएगी?

और क्या तेजस्वी यादव अपनी छवि को री-इनवेंट करने की कोशिश कर रहे हैं?

वोटर अधिकार यात्रा: 17 अगस्त से 1 सितंबर image Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images इस यात्रा में इंडिया गठबंधन के दो साझेदार ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल नहीं पहुंचे.

बीते 17 अगस्त को रोहतास ज़िले में राहुल गांधी की यात्रा जिस तरह की चिलचिलाती गर्मी में शुरू हुई थी, लगभग उसी तरह के मौसम में आज यात्रा का समापन भी हुआ.

गर्मी परवान पर थी लेकिन इससे पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जुटे समर्थकों और कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा नहीं हुआ.

पूरे गांधी मैदान में बिखरे हुए समर्थक अपने अपने झंडों के साथ थे और गांधी मैदान के बाहर भी सड़कों पर उनका हुजूम था.

पेड़ की छांव में बैठे हुए आरा से आए जमुना प्रसाद बीबीसी से कहते हैं, "राहुल जी बहुत दिन बिहार रह गए. वो चले जाएंगे, इसलिए उनको विदा करने अपनी मज़दूरी छोड़कर आए हैं."

राहुल गांधी इस वोटर अधिकार यात्रा कार्यक्रम के तहत बिहार में 15 दिन रहे. राज्य के 25 ज़िले में 1300 किलोमीटर की यात्रा उन्होंने अपने महागठबंधन के सहयोगियों के साथ की.

इस पूरी यात्रा में उनके साथ खुली जीप में राजद नेता तेजस्वी यादव, भाकपा माले के दीपांकर भट्टाचार्य और वीआईपी के मुकेश सहनी रहे.

पटना सिटी से आईं नसरीन बानो कहती हैं, "वोट चोर, गद्दी छोड़ तो आप सुन ही रही हैं. हमारे वोट के अधिकार की ही लड़ाई चल रही है. उसी के लिए हम लोग यहां आए हैं. गर्मी बहुत है लेकिन अभी आफ़त वोट पर है."

इन यात्राओं में सभी दल एक तरह से अपनी ताक़त का प्रदर्शन भी कर रहे हैं. राजद, कांग्रेस, वीआईपी, भाकपा माले, सीपीआई, सीपीएम के साथ साथ कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के झंडे इस पूरी यात्रा में दिखे.

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कांग्रेस के लिए संजीवनी? image Shahnawaz Ahmad/BBC कांग्रेस से जुड़े कई लोगों का मानना है कि इस यात्रा ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा किया है.

इस पूरी यात्रा में फ्रंट सीट पर राहुल गांधी रहे लेकिन इसके चलते महागठबंधन के कार्यकर्ताओं में किसी तरह की दरार नहीं दिखी. बल्कि नेतृत्व के स्तर पर भी बेहतर तालमेल दिखा.

तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को बहुत सहजता से स्पेस दिया और कन्हैया-पप्पू यादव के साथ सहज दिखे. इसी के चलते लोजपा (आर) प्रमुख चिराग पासवान ने तेजस्वी को 'कांग्रेस का पिछलग्गू' कहा.

राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेंद्र कहते हैं, "चूंकि महागठबंधन के भीतर एक चीज़ तय है कि अगर उसकी जीत हुई तो तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री बनेंगे. इसलिए महागठबंधन के सबसे बड़े दल राजद और उसके नेता तेजस्वी को कांग्रेस में कोई ख़तरा महसूस नहीं होता."

उन्होंने कहा, "ये भी ध्यान रखना होगा कि चुनाव आयोग जो एसआईआर कर रही है उसमें 1 फ़ीसदी वोटरों के नाम हटाए जाने का मतलब महागठबंधन के 3 से 4 फ़ीसदी वोटर्स का नुकसान है."

"इसलिए महागठबंधन के दलों के भीतर भी वोट ट्रांसफ़र एक ज़रूरी प्रक्रिया है और इसके लिए ज़रूरी है कि उनमें एकता दिखे."

इस यात्रा से कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साह से लबरेज़ हैं.

सुपौल से आए कांग्रेसी कार्यकर्ता महेश मिश्र कहते हैं, "कुछ लोगों को भ्रम था कि कांग्रेस की ज़मीन गिरवी हो गई है. लेकिन इस यात्रा ने दिखा दिया कि कांग्रेस का ज़मीन और ज़मीर लौट चुका है."

image Shahnawaz Ahmad/BBC कांग्रेस का दावा है कि इससे पार्टी राज्य में मज़बूत होगी.

लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि इससे कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा कितना मज़बूत होगा?

कांग्रेस प्रवक्ता ज्ञान रंजन कहते हैं, "वोटर अधिकार यात्रा से पहले राहुल गांधी पांच बार बिहार आए सामाजिक न्याय की बात की. पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित, आदिवासी और आर्थिक वंचित समाज के लोगों को मुख्यधारा में लाने और आर्थिक-शैक्षणिक न्याय देने की बात बार बार दोहरा रहे हैं."

उन्होंने कहा, "इसी का नतीज़ा है कि बीते कुछ महीनों में कानू, बिंद, नोनिया, केवट, माली, वैश्य, बुनकर, पासवान, रविदास आदि समाज के लोगों ने बड़ी तादाद में कांग्रेस ज्वाइन किया और उनकी भागीदारी इस पूरी यात्रा में दिखती है."

उन्होंने दावा किया, "हमारा संगठन मज़बूत होने जा रहा है. इस यात्रा में हम घर घर तक पहुंच गए हैं और ये हमारे लिए संजीवनी का काम करेगी."

लेकिन नवंबर 2017 के बाद बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी नहीं बनी है और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले इसके गठन की उम्मीद भी नहीं है.

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मतदाताओं की आशंका image Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images यात्रा शुरू में एसआईआर पर केंद्रित थी, लेकिन बाद में और मुद्दे जुड़ते चले गए.

आम मतदाताओं के बीच अपने वोट को लेकर कन्फ्यूज़न की स्थिति है और इसी सवाल को इस वोटर अधिकार यात्रा ने स्वर दिया है.

पटना के गांधी मैदान में चाय बेचने वाले भजन राय कहते हैं, "नरेंद्र मोदी 15 साल से प्रधानमंत्री बन रहे हैं, नीतीश कुमार भी बन रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है? वोट चोरी हो रही है या नहीं हो रही, ये हम नहीं जानते. लेकिन ये लोग लगातार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बन रहे हैं."

वहीं लखीसराय की संजू देवी कहती हैं, "ये जो कह रहे हैं, वो ठीक कह रहे हैं. इसलिए गरीब गुरबा का नेता नहीं जीतता है."

महागठबंधन ने बिहार में जब ये यात्रा शुरू की तो सारा ज़ोर एसआईआर पर ही था लेकिन धीरे धीरे इस यात्रा को राशन, दवाई, पढ़ाई, पेपर लीक, रोज़गार आदि मुद्दों से भी जोड़ा गया.

इस यात्रा में बीबीसी को कई लोग मिले जो अपनी इन मांगों के साथ आए थे. खुद राहुल गांधी ने नए पोस्टर जारी करके इन सभी मुद्दों को एसआईआर से जोड़ा.

पटना के गांधी मैदान में नवादा से आई रजिया देवी कहती हैं, "हमको ज़मीन का कागज़ नहीं मिल रहा है. राशन पांच किलो मिलना चाहिए तो चार किलो मिलता है. क्या भूखे ही वोट देंगे? और हमारा वोट लेकर नेता चला जाएगा?"

वहीं जुर चौपाल कहते हैं, "हम लोगों का वोट नहीं रहेगा तो कोई अधिकार नहीं मिलेगा. अभी कह रहा है आधार कार्ड दिखाओ, दूसरे कागज़ दिखाओ, जिसके पास कागज़ नहीं होगा, वो क्या करेगा?"

बीजेपी का क्या कहना है image BBC

वोटर अधिकार यात्रा के ज़रिए महागठबंधन के शक्ति प्रदर्शन को एनडीए ने फ़्लॉप बताया है.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा, "2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने एक प्रोपेगेंडा खड़ा किया कि भाजपा आएगी तो संविधान बदल देगी. इसका उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में असर पड़ा. लेकिन हमने चुनाव आयोग पर कुछ नहीं कहा."

"इन लोगों के लिए उस समय चुनाव आयोग तो ठीक था, अब चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहे हैं. लेकिन देश की जनता को जब ये सच्चाई पता चली तो उसने उन्हें हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में बुरी तरह हराने का काम किया... अब बिहार में भी हराएंगे."

बीजेपी की प्रदेश उपाध्यक्ष अनामिका पासवान कहती हैं, "महागठबंधन अपनी इज्जत बचाने की कोशिश और राहुल गांधी अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश में बार बार बिहार आ रहे हैं."

उन्होंने कहा, "हम लोग यानी एनडीए के सभी दल लोगों तक केंद्र और राज्य की सभी सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में लगे हैं और आचार संहिता से पहले सारे अधूरे प्रोजेक्ट पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. जनता जानती है हम काम करने वाले हैं और महागठबंधन हल्ला और अपमान करने वाला."

वहीं जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा का कहना है, "वोटर अधिकार यात्रा चुनावी नौटंकी है. हार की आहट से ये यात्रा उपजी है जो बिल्कुल फ्लॉप साबित हुई है. वोट चोरी तो राजद के ज़माने में होती है हमारी सरकार ने तो मानव विकास और आधारभूत संरचना को लेकर काम किया है."

लेकिन महागठबंधन के लिए इस यात्रा का हासिल क्या है?

राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, "पहले महागठबंधन के कार्यकर्ताओं के दिमाग मिले थे. इस यात्रा के बाद उनका दिल और दिमाग दोनों मिल गया है. आप अंदाज़ा लगाएं जब ज़मीनी स्तर पर दिमाग और दिल मिल जाएं तो चुनाव के परिणाम क्या आने वाले हैं."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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