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टोलकर्मियों की दादागिरी, “टोल दो और निकलो” पर अड़े कर्मचारी, प्रशासनिक निर्देशों का भी नहीं दिख रहा असर

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राजस्थान सहित देशभर के कई इलाकों में टोल प्लाजा पर वसूली को लेकर टोलकर्मियों के रवैये पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। यात्रियों की शिकायत है कि कर्मचारी यात्रियों से बातचीत करने या उनकी समस्याओं को सुनने के बजाय केवल एक ही बात कहते हैं – “टोल दो और निकलो।” प्रशासन ने कई बार निर्देश जारी किए हैं कि यात्रियों से शालीन व्यवहार किया जाए, लेकिन जमीन पर इनका असर नजर नहीं आता।

यात्रियों की बढ़ती शिकायतें

यात्रियों का कहना है कि टोलकर्मी न केवल असहयोगी रवैया अपनाते हैं बल्कि कई बार उनकी आवाजाही में भी अनावश्यक बाधा डालते हैं। कई वाहन चालकों का आरोप है कि जब वे छूट श्रेणी (जैसे एंबुलेंस, सरकारी वाहन, दिव्यांगजन) की जानकारी देते हैं तो कर्मचारी सुनने के बजाय सीधे टोल भुगतान का दबाव बनाते हैं।

प्रशासनिक आदेश बेअसर

स्थानीय प्रशासन और सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से बार-बार निर्देश जारी किए गए हैं कि टोल प्लाजा पर कर्मचारियों का व्यवहार यात्रियों के प्रति शालीन और सहयोगपूर्ण होना चाहिए। साथ ही, विवाद की स्थिति में सीसीटीवी निगरानी और शिकायत निवारण की व्यवस्था भी अनिवार्य की गई है। लेकिन यात्रियों का कहना है कि ये आदेश केवल कागजों में सीमित रह गए हैं।

सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल

हाल ही में कई टोल प्लाजा से वीडियो सामने आए हैं, जिनमें कर्मचारी यात्रियों से बदसलूकी करते दिखाई दिए। इनमें कहीं पर यात्रियों को बेवजह रोकने की शिकायतें सामने आईं, तो कहीं टोलकर्मियों द्वारा अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए वीडियो वायरल हुए। इससे टोलकर्मियों के रवैये पर गंभीर सवाल उठे हैं।

अधिकारियों की चुप्पी

मामले पर जब टोल प्लाजा के अधिकारियों से प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने माना कि शिकायतें बढ़ी हैं, लेकिन उनका कहना है कि कर्मचारियों को लगातार प्रशिक्षित किया जाता है। वहीं, स्थानीय प्रशासन का कहना है कि शिकायत निवारण हेल्पलाइन नंबर जारी है और यात्रियों से अपील है कि वे अपनी समस्या दर्ज करवाएं।

यात्रियों की मांग

यात्रियों की मांग है कि टोलकर्मियों पर सख्त कार्रवाई की जाए और उन पर दंडात्मक प्रावधान लागू हों। साथ ही, टोल प्लाजा पर शिकायत काउंटर को सक्रिय किया जाए और हर वाहन चालक को टोल भुगतान की स्पष्ट पर्ची दी जाए।

विशेषज्ञों की राय

परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि जब से फास्टैग सिस्टम लागू हुआ है, अधिकांश विवाद कम हुए हैं, लेकिन ग्रामीण या वैकल्पिक मार्गों पर अब भी नकद टोल वसूली में पारदर्शिता की कमी है। ऐसे में यात्रियों को केवल “टोल दो और निकलो” कह देना व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।

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