नई दिल्ली, 21 अप्रैल (आईएएनएस)। पोप फ्रांसिस का सोमवार को निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। वेटिकन एक्सपर्ट प्रोफेसर फ्रांसेस्को सिस्की मानते हैं कि पोप फ्रांसिस का जाना कैथोलिक चर्च और मानवता के लिए एक झटका है, क्योंकि इस दौर में शायद किसी ने भी उनकी तरह दुनिया से जुड़ने की कोशिश नहीं की।
प्रोफेसर सिस्की ने सोमवार को आईएएनएस से कहा, "उन्होंने सिर्फ कैथोलिक ही नहीं ब्लकि सभी पुरुषों और महिलाओं से जुड़ने की कोशिश की चाहे उनकी जाति, नस्ल या राजनीतिक सोच कुछ भी हो। पोप फ्रांसिस का निधन इसलिए भी एक झटका है क्योंकि इस समय दुनिया में दो युद्ध चल रहे हैं, एक मध्य पूर्व में और दूसरा यूक्रेन में। इसलिए मुझे लगता है कि उनका जाना सभी के लिए एक बड़ी क्षति है।"
पोप फ्रांसिस के बाद कैथोलिक चर्च की क्या दशा और दिशा होगी इस संबंध में प्रोफेसर सिस्की ने कहा, "चर्च को कुछ हफ्तों में फैसला करना होगा। इसके लिए सम्मेलन होगा हालांकि हमें नहीं पता कि यह कितने समय तक चलेगा। यह एक बहुत बड़ा सम्मेलन होगा क्योंकि इसमें 137-138 कार्डिनल (कैथोलिक चर्च के पादरी वर्ग के वरिष्ठ सदस्य) इसमें भाग लेंगे। यह संख्या आमतौर पर 120 से कम होती है। दुनिया भर से लोग इसमें शामिल होंगे। तेहरान, लाओस, कार्डिनल, मंगोलिया सभी जगहों से कार्डिनल होंगे। यह अतीत में किसी भी अन्य सम्मेलन की तुलना में बहुत विविधतापूर्ण और ऐतिहासिक रूप से वैश्विक होगा।"
इतालवी लेखक और स्तंभकार ने कहा, "सम्मेलन के सामने संभवतः यह सवाल होगा कि हम किस तरह का पोप चाहते हैं? क्या हम एक ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो चर्च की परेशानियों पर ध्यान केंद्रित करे या एक ऐसा व्यक्ति जो दुनिया की परेशानियों पर ध्यान केंद्रित करे?"
पोप फ्रांसिस का निधन सोमवार (21 अप्रैल) सुबह वेटिकन के कासा सांता मार्टा स्थित उनके निवास स्थान पर हुआ। उनके निधन के समाचार से दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। विश्व नेताओं ने उन्हें अपनी श्रद्धांजली दी और उन्हें ऐसे शख्स के रुप में याद किया जो गरीबों, कमजोरों के पक्ष में मजबूती से खड़ा रहा।
पोप फ्रांसिस ने मृत्यु से एक दिन पहले सेंट पीटर्स स्क्वायर में हजारों श्रद्धालुओं को 'हैप्पी ईस्टर' की शुभकामनाएं दी थीं। बेसिलिका की बालकनी से 35,000 से अधिक लोगों की भीड़ को ईस्टर की शुभकामनाएं देने के बाद, फ्रांसिस ने अपने पारंपरिक 'उर्बी एट ओर्बी' ('शहर और दुनिया के लिए') आशीर्वाद को पढ़ने का काम एक सहयोगी को सौंप दिया।
उन्होंने भाषण में कहा , "धर्म की स्वतंत्रता, विचार की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान के बिना शांति नहीं हो सकती है।" उन्होंने "चिंताजनक" यहूदी-विरोध और गाजा में 'नाटकीय और निंदनीय' स्थिति की भी निंदा की।
--आईएएनएस
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